Hindi, asked by tazmin, 1 year ago

Plzz a vigyapan on sharbat

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Answered by abhishek455
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गर्मी आई, गर्मी आई,रख दो कंबल और रजाई।
गर्मी मतलब मोज, मस्ती , तरह-तरह के रसों के स्वाद काम स्वादन करना। कभी आम कार्यकर्ता पन्ना तो गुलाब जल काम शरबत।

तरबूज का शरबत बहुत ही स्वादिष्ट होता है। यह हमें चिपचिपी गर्मी, धूप, लू, उमस आदि में ठंडक देने का काम करता है।

उत्तर भारत में तो लोग इसके बारे में कम ही जानते हैं, लेकिन मुंबई में यह हर जगह मिलता है और लोग इसे बहुत पसंद भी करते हैं। तो आइए आज हम भी मुंबई का मशहूर तरबूज का शरबत बनाते हैं।
Answered by tanwi11
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मुझे एक सूरज दे दो, मुझे परवाह नहीं कि ये कितना गर्म है और शरबत, मुझे परवाह नहीं कि ये कितना ठंडा है, मेरी जन्नत उतनी आसानी से तैयार हो जाती है जितनी आपकी फ़ारसी की.

1813 में लॉर्ड बायरन ने अपनी इस्तांबुल यात्रा के दौरान ये कहा था.

शरबत एक फ़ारसी शब्द है. इसका मतलब है पीने लायक़.

भारत या दुनिया के किसी भी हिस्से में जहाँ गर्मी जीवन का हिस्सा है, वहाँ शरबत पीने का चलन कोई नया नहीं है.

भारत में अभी कुछ समय पहले तक मेहमान का स्वागत ठंडे शरबत के गिलास से होता था, स्कूल से लौटकर आए बच्चों की खोई ऊर्जा लौटाने के लिए उन्हें शरबत दिया जाता था.

हालाँकि अब शरबत की जगह कृत्रिम पेय और जूस ने ले ली है. भारत में गर्मियों में जैसे जैसे पारा चढ़ता है और तापमान 44 डिग्री को छूने लगता है, बाज़ार में कई रसीले फल दिखाई देने लगते हैं.

इन फलों को ठंडे दूध या पानी में मिलाकर ठंडा पेय तैयार किया जाता है. ये शरबत तेज़ गर्मी में प्यास तो बुझाते ही हैं, औषधीय महत्व के भी होते हैं. ये एंजाइमों, खनिजों और विटामिनों के साथ हमारा खून भी बढ़ाते हैं.

शरबत बनाने की कला भारत में कैसे पहुंची, ये जानना बड़ा दिलचस्प है.

प्राचीन भारत में शरबत को पनाका कहा जाता था. ये फलों के रस से तैयार किए जाते थे. इनका जिक्र शास्त्रों, पुराणों और अन्य ग्रंथों में मिलता है.

अर्थशास्त्र में शरबत का ज़िक्र मधुपराका के रूप में है, जिसमें घर आए मेहमानों का स्वागत शहद मिले दही और घी से होता था- पाँच महीने की गर्भवती को भी ये पेय दिया जाता था.


यहाँ तक कि नौकरी की तलाश में घर से निकलने वाले विद्यार्थियों को भी मधुपराका दिया जाता था. यही नहीं विवाह के लिए दूल्हा जब लड़की के घर जाता था और शादी के बाद दुल्हन जब वर के घर आती थी उन्हें भी मधुपराका दिया जाता था.

भारत में शरबत बनाने की कला मुग़ल काल में अपने चरम पर पहुँची. शरबत बनाने के अलग-अलग तरीक़े ईजाद किए गए और सम्राट के लिए ख़ुशबूदार शरबत तैयार किए गए. तब शाही दरबार में हाकिम की भूमिका अहम होती थी. हाकिम अपने शरबतों से सम्राट की सेहत का ख़्याल रखते थे.

कहा जाता है कि महारानी नूरजहां ने भारत में गुलाब शरबत का चलन शुरू किया था. इसका क़िस्सा भी मज़ेदार है.

हुआ यूं कि गर्मी की एक शाम सम्राट जहाँगीर महारानी नूरजहां के साथ अपने गुलाबों के बाग में टहल रहे थे. गुलाबी और नारंगी आसमान की रंगत धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही थी, गुलाबों की ख़ुशबू फिजां में थी. इस माहौल ने महारानी को फ़ारस में बने ख़ुशबूदार शरबत की याद दिला दी, जिसे उन्हें हर रोज़ फ़लूदा में मिलाकर दिया जाता था.

गुलाब अपनी सुगंध बिखेर रहे थे, इससे महारानी के मन में विचार आया कि क्यों न इससे शरबत तैयार किया जाए.

भारत में शरबत बनाने की ये शुरुआत थी. इससे पहले इन्हें चिकित्सा के रूप में मरीज़ को दिया जाता था. गुलाब शरबत भारत में अपनी तरह का पहला शरबत था और आज ये तक़रीबन हर घर का पेय है.

महारानी नूरजहां की दिलचस्पी को देखते हुए हाकिमों ने शाही परिवार के लिए कई अन्य ख़ुशबूदार मीठे और खट्टे पेय तैयार किए.

खट्टा-मीठा पेय जिसमें कि पुदीना भी मिला होता था, फ़ारसी परिवारों के रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा होता था और इसे शिकंजबिन कहा जाता था. बाद में इसे पानी और बर्फ़ से तैयार कर नए रूप में पेश किया गया.


पश्चिमी प्रभाव के रूप में इसमें सोडा वाटर मिलाकर तैयार किया जाता है. अतीत में फ़ारसियों ने शिकंजबिन की ख़ुराक़ के साथ पीलिया का इलाज किया और इसे मरीज को तब तक दिया जाता था जब तक कि वो पूरी तरह ठीक न हो जाए.

मध्य पूर्व में गर्मियों के लिए पेय तैयार करने के लिए मुख्य रूप से दही का प्रयोग होता था. तुर्की, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन में इससे तैयार पेय को टेन या आर्येन या डो कहा जाता है.

सड़क किनारे आपको सॉस-सॉस की आवाज़ें सुनाई देंगी, गधा और घोड़ा गाड़ी में गाना गाते हुए कुछ लोग आर्येन-आर्येग गाते सुनाई देंगे. ये शहतूत, दही, इमली, नींबू और गुलाब जल से तैयार रंगीन पेय बेचते हैं. कुप्पी लगे बड़े गिलास को कंधों पर रखकर शहरों की गली-गली में इस रंगीन पेय की रंगीनियत बिखेरते हैं.

मिस्र में शरबत की विभिन्न क़िस्में हैं. सबसे आम है चीनी और गुलाब की ख़ुशबू मिला पेय. इससे जुड़ी एक दिलचस्प कहानी भी है.

एक मुस्लिम रहस्यवादी अल हल्लाज ने सीधे नदी का पानी लिया और गुलाब के फूल और कपूर की अत्तर से स्वादिष्ट पेय तैयार किया. ज़ायक़ा बेहतर करने के लिए उन्होंने एक नया घड़ा लिया इसमें मोटी दानेदार चीनी घोली, गुलाब जल मिलाया और फिर इसका गाढ़ा पेस्ट बनाने के लिए आग पर रख लिया.

इसके बाद उन्होंने पेस्ट को समान रूप से नए घड़े में अंदर की तरफ़ से चिपका दिया. घड़े ने इस पेस्ट को सोख लिया और कोटिंग का रूप ले लिया. उन्होंने इस घड़े को अपने पास रख लिया. अब जब भी कोई उनसे पानी मांगता वो पेस्ट को कुछ देर पानी में घुलने का इंतज़ार करते और फिर उस आदमी को दे देते. जो इसे पीता वो इसे चमत्कार समझता और मानता कि किसी चमत्कारवश ही उसे गुलाब मिश्रित शरबत मिला है.

शरबत ए गुलाब को बनाने के लिए पहले फूल से गुलाब की पंखुड़ियों को तोड़ें, पानी में भिगो दें और अच्छी तरह से धोएं. फिर पंखुड़ियों को एक तरफ़ रख दें.

पंखुड़ियों को एक बर्तन में रख दें, पानी मिलाएं और धीमी आग में तब तक पकाएं जब तक कि तरल पदार्थ आधा न हो जाए. आंच से हटाएं और फिर चीनी मिलाएं.

फिर से आंच पर रखें और चीनी घुलने तक चलाएं. तब तक पकाएं जब तक कि सिरप उबलने न लगे.

ठंडा करें और इसमें गुलाब जल मिलाएं. इस्तेमाल करने के समय एक गिलास में तैयार तीन चम्मच मिश्रण में ठंडा दूध मिलाएं और गुलाब की पखुंडियों के साथ सजाकर पेश करें.

tanwi11: hope it's help u
abhishek455: kk
tanwi11: welcm
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