Poem in HINDI on any season... By Sumitranandan Pant or Mahadevi Verma or Jai Shankar Prasad or any famous poet... But be quick have to submit it on Monday !!
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बारहमासा
(१)
मां कहती अषाढ़ आया है
काले काले मेघ घिर रहे,
रिमझिम बून्दें बरस रही हैं
मोर नाचते हुए फिर रहे।
(२)
फिर यह तो सावन के दिन हैं
राखी भी आई चमकीली,
नन्हे को राखी बाँधी है
मां ने दी है चुन्नी नीली।
(३)
भादों ने बिजली चमका कर
गरज गरज कर हमें डराया,
क्या हमने चांई मांई कर
इसीलिए था इसे बुलाया ।
(४)
गन्ने चटका चटका कर मां
किन देवों को जगा रही है,
ये कुंवार तक सोते रहते
क्या इनको कुछ काम नहीं है ।
(५)
दिये तेल सब रामा लाया
हमने मिल बत्तियां बनाईं
कातिक में लक्ष्मी की पूजा
करके दीपावली जलाई
(६)
माँ कहती अगहन के दिन हैं
खेलो पर तुम दूर न जाना
हमको तो अपनी चिड़ियों की
खोज खबर है लेकर आना ।
(७)
पूस मास में सिली रजाई
निक्की रोजी बैठे छिप कर
रामा देख इन्हें पाएगा
कर देगा इन सबको बाहर ।
(८)
माघ मास सर्दी के दिन हैं
नहा नहा हम कांपे थर थर,
पर ठाकुर जी कभी न काँपे
उन्हें नहीं क्या सर्दी का डर ?
(९)
फागुन आया होली खेली
गुझियां खाईं जन्म मनाया,
क्या मैं पेट चीर कर निकली
या तारों से मुझे बुलाया ।
(१०)
चेत आ गया चैती गाओ
माँ कहती बसन्त आया है,
नये नये फूलों पत्तों से
बाग हमारा लहराया है ।
(११)
अब बैशाख आ गई गर्मी
खेलेंगे हम फव्वारों से,
बादल अब न आएँगे हमको
ठंडा करने बौछारों से।
(१२)
मां कहती अब जेठ तपेगा
निकलो मत घर बाहर दिन में,
हम कहते गौरइयां प्यासी
पानी तो रख दें आँगन में ।
बाबू जी कहते हैं इनको
नया बरस है पढ़ने भेजो,
माँ कहतीं ये तो छोटे हैं
इन्हें प्यार से यहीं सहेजो।
हम गुपचुप गुपचुप कहते हैं
हमने तो सब पढ़ डाला है,
और पढ़ाएगा क्या कोई
पंडित कहां कहां जाता है
महादेवि वरमा
(१)
मां कहती अषाढ़ आया है
काले काले मेघ घिर रहे,
रिमझिम बून्दें बरस रही हैं
मोर नाचते हुए फिर रहे।
(२)
फिर यह तो सावन के दिन हैं
राखी भी आई चमकीली,
नन्हे को राखी बाँधी है
मां ने दी है चुन्नी नीली।
(३)
भादों ने बिजली चमका कर
गरज गरज कर हमें डराया,
क्या हमने चांई मांई कर
इसीलिए था इसे बुलाया ।
(४)
गन्ने चटका चटका कर मां
किन देवों को जगा रही है,
ये कुंवार तक सोते रहते
क्या इनको कुछ काम नहीं है ।
(५)
दिये तेल सब रामा लाया
हमने मिल बत्तियां बनाईं
कातिक में लक्ष्मी की पूजा
करके दीपावली जलाई
(६)
माँ कहती अगहन के दिन हैं
खेलो पर तुम दूर न जाना
हमको तो अपनी चिड़ियों की
खोज खबर है लेकर आना ।
(७)
पूस मास में सिली रजाई
निक्की रोजी बैठे छिप कर
रामा देख इन्हें पाएगा
कर देगा इन सबको बाहर ।
(८)
माघ मास सर्दी के दिन हैं
नहा नहा हम कांपे थर थर,
पर ठाकुर जी कभी न काँपे
उन्हें नहीं क्या सर्दी का डर ?
(९)
फागुन आया होली खेली
गुझियां खाईं जन्म मनाया,
क्या मैं पेट चीर कर निकली
या तारों से मुझे बुलाया ।
(१०)
चेत आ गया चैती गाओ
माँ कहती बसन्त आया है,
नये नये फूलों पत्तों से
बाग हमारा लहराया है ।
(११)
अब बैशाख आ गई गर्मी
खेलेंगे हम फव्वारों से,
बादल अब न आएँगे हमको
ठंडा करने बौछारों से।
(१२)
मां कहती अब जेठ तपेगा
निकलो मत घर बाहर दिन में,
हम कहते गौरइयां प्यासी
पानी तो रख दें आँगन में ।
बाबू जी कहते हैं इनको
नया बरस है पढ़ने भेजो,
माँ कहतीं ये तो छोटे हैं
इन्हें प्यार से यहीं सहेजो।
हम गुपचुप गुपचुप कहते हैं
हमने तो सब पढ़ डाला है,
और पढ़ाएगा क्या कोई
पंडित कहां कहां जाता है
महादेवि वरमा
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