poem on freedom of religion in hindi with rhymes please give me the answer I will mark at brainliest
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कल वाले दिन अब परसों हुए
उस जुनू को जिये बरसो हुए
दिन कटता था जिसके दीदार में
उस इश्क़ को किये बरसो हुए
वो भी क्या दिन थे
लगता हैं सब कल परसों हुए
हाथो में हाथ हसीना का साथ
उसे बाँहों में भरे बरसो हुए
जिस मंज़र से की थी इस क़दर चाहत हमने
उस गली से गुजरे बरसो हुए
याद करता हैं वो चौक का चौकीदार हमें
इस मोहल्ले में चोरी हुए बरसो हुए
“ठाकुर” आ जाओ तुम फिर से अपने रंग में
कि तुम्हे भी किसी का दिल चुराये बरसो हुए
आशिकों कि ज़मात में एक तुम्हारा भी नाम हो
जो मिटाए ना मिटे फिर कितने भी बरसो हुए
बm
उस घर पर बम ना गिराना कि वहाँ भी एक बेटा रहता हैं
खटिया पर खांसता हुआ एक बुढा भी लेटा रहता हैं !
एक धमाका खामोश कर देता हैं मुस्कान कई माँऔ की
क्या बम बनाने वाले नहीं जानते कि माँ का भी कलेजा रहता हैं !
जहाँ बम नहीं गिर रहे वहाँ बन्दूके निकल आई हैं
मजहब के नाम पर मौत की संदूके निकल आई हैं !
मैं जानता हूँ मेरे दरवाजे पर किसी धमाके की आवाज़ नहीं आती हैं
देखते हैं कब तक मेरा शहर इस गूंज से महफूज़ रहता हैं !
शान से कह देते हैं हम लोग कि हमें क्या करना हैं
हर कायर इस मुल्क में मासूम बनकर रहता हैं !
हर सुबह “ठाकुर” खुद से ये सवाल पूछता रहता हैं
अख़बार की इन सुर्खियों पर तू कैसे चाय की चुस्किया लेता रहता हैं !
उस जुनू को जिये बरसो हुए
दिन कटता था जिसके दीदार में
उस इश्क़ को किये बरसो हुए
वो भी क्या दिन थे
लगता हैं सब कल परसों हुए
हाथो में हाथ हसीना का साथ
उसे बाँहों में भरे बरसो हुए
जिस मंज़र से की थी इस क़दर चाहत हमने
उस गली से गुजरे बरसो हुए
याद करता हैं वो चौक का चौकीदार हमें
इस मोहल्ले में चोरी हुए बरसो हुए
“ठाकुर” आ जाओ तुम फिर से अपने रंग में
कि तुम्हे भी किसी का दिल चुराये बरसो हुए
आशिकों कि ज़मात में एक तुम्हारा भी नाम हो
जो मिटाए ना मिटे फिर कितने भी बरसो हुए
बm
उस घर पर बम ना गिराना कि वहाँ भी एक बेटा रहता हैं
खटिया पर खांसता हुआ एक बुढा भी लेटा रहता हैं !
एक धमाका खामोश कर देता हैं मुस्कान कई माँऔ की
क्या बम बनाने वाले नहीं जानते कि माँ का भी कलेजा रहता हैं !
जहाँ बम नहीं गिर रहे वहाँ बन्दूके निकल आई हैं
मजहब के नाम पर मौत की संदूके निकल आई हैं !
मैं जानता हूँ मेरे दरवाजे पर किसी धमाके की आवाज़ नहीं आती हैं
देखते हैं कब तक मेरा शहर इस गूंज से महफूज़ रहता हैं !
शान से कह देते हैं हम लोग कि हमें क्या करना हैं
हर कायर इस मुल्क में मासूम बनकर रहता हैं !
हर सुबह “ठाकुर” खुद से ये सवाल पूछता रहता हैं
अख़बार की इन सुर्खियों पर तू कैसे चाय की चुस्किया लेता रहता हैं !
SUBHAM3015:
mark as brainliest....hope you...
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