Poem on sardar vallabh bhai Patel the architect of india
Answers
Answered by
1
हर वर्ष, राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर,
दूरदर्शन आकाशवाणी से,
प्रथम प्रधान मंत्री नेहरू का,
गुणगान सुन -
मैं भी चाहता हूं,
उनकी जयकार करूं,
राष्ट्र पर उनके उपकार,
मैं भी स्वीकार करूं।
लेकिन याद आता है तत्क्षण,
मां का विभाजन,
तिब्बत समर्पण,
चीनी अपमान,
कश्मीर का तर्पण -
भृकुटि तन जाती है,
मुट्ठी भिंच जाती है।
विद्यालय के भोले बच्चे,
हाथों में कागज का तिरंगा ले,
डोल रहे,
इन्दिरा गांधी की जय बोल रहे।
मैं फिर चाहता हूं,
उस पाक मान मर्दिनी का
स्मरण कर,
प्रशस्ति गान गाऊं।
पर तभी याद आता है -
पिचहत्तर का आपात्काल,
स्वतंत्र भारत में
फिर हुआ था एक बार,
परतंत्रता का भान।
याद कर तानाशाही,
जीभ तालू से चिपक जाती है,
सांस जहां कि तहां रुक जाती है।
युवा शक्ति की जयघोष के साथ,
नारे लग रहे -
राहुल नेतृत्व लो,
सोनिया जी ज़िन्दाबाद;
राजीव जी अमर रहें।
चाहता हूं,
अपने हम उम्र पूर्व प्रधान मंत्री को,
स्मरण कर गौरवान्वित हो जाऊं,
भीड़ में, मैं भी खो जाऊं।
तभी तिरंगे की सलामी में
सुनाई पड़ती है गर्जना,
बोफोर्स के तोप की,
चर्चा २-जी घोटाले की।
चाल रुक जाती है,
गर्दन झुक जाती है।
आकाशवाणी, दूरदर्शन,
सिग्नल को सीले हैं,
पता नहीं -
किस-किस से मिले हैं।
दो स्कूली बच्चे चर्चा में मगन हैं,
सरदार पटेल कोई नेता थे,
या कि अभिनेता थे?
मैं भी सोचता हूं -
उनका कोई एक दुर्गुण याद कर,
दृष्टि को फेर लूं,
होठों को सी लूं।
पर यह क्या?
कलियुग के योग्य,
इस छोटे प्रयास में,
लौह पुरुष की प्रतिमा,
ऊंची,
और ऊंची हुई जाती है।
आंखें आकाश में टिक जाती हैं -
पर ऊंचाई माप नहीं पाती हैं।
Similar questions