Poos ki raat kahani ke patro ke nam likhiye
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हल्कू अपने खेत को नीलगायों से बचाने के लिए रातभर पहरेदारी करता है लेकिन पूस की उस रात खेतों को नहीं बचा पाता। ... मुन्नी ने चिंतित होकर कहा, “अब मजूरी करके मालगुजारी करनी पड़ेगी।” हल्कू का उत्तर था, “रात को ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा।” मुंशी प्रेमचंद ने “पूस की रात” कहानी करीब 100 साल पहले (1921) लिखी थी।
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