Hindi, asked by khushubabli2palu, 8 months ago

prabhati Kavita raghuveer sahaye by hareesh trivedi kavita​

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Answered by Zeno3
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आया प्रभात

चंदा जग से कर चुका बात

गिन गिन जिनको थी कटी किसी की दीर्घ रात

अनगिन किरणों की भीड़ भाड़ से भूल गये

पथ‚ और खो गये वे तारे।

अब स्वप्नलोक

के वे अविकल शीतल अशोक

पल जो अब तक वे फैल फैल कर रहे रोक

गतिवान समय की तेज़ चाल

अपने जीवन की क्षण–भंगुरता से हारे।

जागे जन–जन‚

ज्योतिर्मय हो दिन का क्षण क्षण

ओ स्वप्नप्रिये‚ उन्मीलित कर दे आलिंगन।

इस गरम सुबह‚ तपती दुपहर

में निकल पड़े।

श्रमजीवी‚ धरती के प्यारे।

∼ रघुवीर सहाय

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