Pradhan Mantri ki Shakti Ho Par Prakash daliye
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कार्यपालिका शक्तियाँ (Executive Powers):
यद्यपि राष्ट्रपति प्रशासन का वास्तविक प्रधान नहीं है फिर भी शासन के सभी कार्य उसी के नाम से होते हैं तथा संघ के सभी कार्यपालिका अधिकारी उसके अधीन रहते हैं. राष्ट्रपति कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद्, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री है, की सलाह पर करेगा. 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया गया है.
विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers):
राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है. संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं. राष्ट्रपति संसद के सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोक सभा का विघटन करने की शक्ति रखता है. राष्ट्रपति लोक सभा के लिए प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में एक साथ संसद के दोनों सदनों में प्रारम्भिक अभिभाषण करता है. राष्ट्रपति को संसद में विधायी विषयों तथा अन्य विषयों के सम्बन्ध में सन्देश भेजने का अधिकार है.
राष्ट्रपति आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 व्यक्तियों को लोकसभा में तथा साहित्य, कला, विज्ञान अथवा समाज सेवा क्षेत्र के 12 व्यक्तियों को राज्यसभा में मनोनीत कर सकता है. राष्ट्रपति वार्षिक विक्तीय विवरण, नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिशें तथा अन्य आयोगों की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करवाता है. कुछ विषयों से सम्बंधित विधेयक संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है, जैसे – राज्यों की सीमा परिवर्तन, धन विधेयक, अनुच्छेद 31 क (1) में वर्णित विषय आदि से सम्बंधित विधेयक. वह किसी भी विधेयक को अनुमति दे सकता है, उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है तथा उस पर अपनी अनुमति रोक सकता है, लेकिन धन विधेयकों पर राष्ट्रपति को अनिवार्य रूप से अनुमति देनी होती है तथा उसे पुनर्विचार के लिए भी वापस नहीं भेज सकता है. संविधान संशोधन विधेयक के लिए भी इस प्रकार का प्रावधान है.
44वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद् की सलाहों को केवल एक बार पुनर्विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार दिया गया है, यदि परिषद् अपने विचार पर टिकी रहती है तो राष्ट्रपति उसी सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा. संविधान में राष्ट्रपति को किसी विधेयक को अनुमति न देने या अनुमति देने अथवा वापस करने की समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है. इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी विधेयक पर राष्ट्रपति चाहे तो अपने पूरे कार्यकाल में कोई मंतव्य नहीं भी दे सकता है. यदि वह ऐसा करता है इसको वीटो (Veto) ही माना जाता है. इस प्रकार के Veto को pocket veto का नाम दिया जाता है. ऐसा एक बार 1986 में हुआ था जब भारतीय डाकघर संशोधन विधयेक पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कोई मंतव्य नहीं दिया और वह विधेयक उनके pocket में ही रह गया.
राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित विधयेक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है. छ: माह की अवधि में यदि वह राज्य विधान मंडलों द्वारा पुनर्विचार के पश्चात् प्रस्तुत किया जाता है तो भी वह उसे अनुमति देने के लिए बाध्य नहीं था. राष्ट्रपति इसे अनिश्चित काल के लिए अपने पास भी रख सकता है, लेकिन धन विधेयक को वह या तो अनुमति प्रदान करता है या इनकार करता है पर उसे पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता. राष्ट्रपति, जब संसद का सत्र न चल रहा हो तथा किसी विषय पर तुरंत विधान बनाने की आवश्यकता हो तो अध्यादेश द्वारा विधान बना सकता है. उसके द्वारा बनाए गए अध्यादेश संसद के विधान की ही तरह होते हैं, लेकिन अध्यादेश अस्थायी होता है. राष्ट्रपति अध्यादेश अपनी मंत्रिपरिषद् की सलाह से जारी करता है. संसद का अधिवेशन होने पर अध्यादेश संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए. यदि संसद उस अध्यादेश को अधिवेशन प्रारंभ होने की तिथि से छः सप्ताह के अन्दर पारित नहीं कर देती, तो वह स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाएगा. 44वें संविधान संशोधन द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि राष्ट्रपति के अध्यादेश निकालने की परिस्थितियों को असद्भावनापूर्ण होने का संदेह होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है.
न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers):
राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को तथा अपराधी को मृत्यु दंड दिए जाने की स्थिति में क्षमा दान दे सकता है. दंड को कम कर सकता है, दंडादेश की प्रकृति को बदल सकता है. दंड को निलंबित करने का भी राष्ट्रपति को अधिकार है.
सैन्य शक्तियाँ (Military Powers):
राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है. वह तीनों सेनाओं के सेना अध्यक्षों की नियुक्ति करता है. उसे युद्ध या शांति की घोषणा करने, तथा रक्षा बलों को नियोजित करने का अधिकार है. लेकिन उसके ये अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं.
राजनयिक शक्तियाँ (Diplomatic Powers):
राष्ट्रपति संसद की विधि के अधीन राजनयिकों की विदेशों में नियुक्ति करता है. बाहर के राजनयिकों के परिचय-पत्र ग्रहण करता है. संसद की विधि के अधीन राष्ट्रपति को विदेशों से मंत्रियों की सलाह के अनुसार करार और संधि करने का अधिकार है.
परामर्श शक्तियाँ (Consultative Powers):
राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है, लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है.
यद्यपि राष्ट्रपति प्रशासन का वास्तविक प्रधान नहीं है फिर भी शासन के सभी कार्य उसी के नाम से होते हैं तथा संघ के सभी कार्यपालिका अधिकारी उसके अधीन रहते हैं. राष्ट्रपति कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद्, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री है, की सलाह पर करेगा. 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया गया है.
विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers):
राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है. संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं. राष्ट्रपति संसद के सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोक सभा का विघटन करने की शक्ति रखता है. राष्ट्रपति लोक सभा के लिए प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में एक साथ संसद के दोनों सदनों में प्रारम्भिक अभिभाषण करता है. राष्ट्रपति को संसद में विधायी विषयों तथा अन्य विषयों के सम्बन्ध में सन्देश भेजने का अधिकार है.
राष्ट्रपति आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 व्यक्तियों को लोकसभा में तथा साहित्य, कला, विज्ञान अथवा समाज सेवा क्षेत्र के 12 व्यक्तियों को राज्यसभा में मनोनीत कर सकता है. राष्ट्रपति वार्षिक विक्तीय विवरण, नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिशें तथा अन्य आयोगों की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करवाता है. कुछ विषयों से सम्बंधित विधेयक संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है, जैसे – राज्यों की सीमा परिवर्तन, धन विधेयक, अनुच्छेद 31 क (1) में वर्णित विषय आदि से सम्बंधित विधेयक. वह किसी भी विधेयक को अनुमति दे सकता है, उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है तथा उस पर अपनी अनुमति रोक सकता है, लेकिन धन विधेयकों पर राष्ट्रपति को अनिवार्य रूप से अनुमति देनी होती है तथा उसे पुनर्विचार के लिए भी वापस नहीं भेज सकता है. संविधान संशोधन विधेयक के लिए भी इस प्रकार का प्रावधान है.
44वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद् की सलाहों को केवल एक बार पुनर्विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार दिया गया है, यदि परिषद् अपने विचार पर टिकी रहती है तो राष्ट्रपति उसी सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा. संविधान में राष्ट्रपति को किसी विधेयक को अनुमति न देने या अनुमति देने अथवा वापस करने की समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है. इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी विधेयक पर राष्ट्रपति चाहे तो अपने पूरे कार्यकाल में कोई मंतव्य नहीं भी दे सकता है. यदि वह ऐसा करता है इसको वीटो (Veto) ही माना जाता है. इस प्रकार के Veto को pocket veto का नाम दिया जाता है. ऐसा एक बार 1986 में हुआ था जब भारतीय डाकघर संशोधन विधयेक पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कोई मंतव्य नहीं दिया और वह विधेयक उनके pocket में ही रह गया.
राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित विधयेक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है. छ: माह की अवधि में यदि वह राज्य विधान मंडलों द्वारा पुनर्विचार के पश्चात् प्रस्तुत किया जाता है तो भी वह उसे अनुमति देने के लिए बाध्य नहीं था. राष्ट्रपति इसे अनिश्चित काल के लिए अपने पास भी रख सकता है, लेकिन धन विधेयक को वह या तो अनुमति प्रदान करता है या इनकार करता है पर उसे पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता. राष्ट्रपति, जब संसद का सत्र न चल रहा हो तथा किसी विषय पर तुरंत विधान बनाने की आवश्यकता हो तो अध्यादेश द्वारा विधान बना सकता है. उसके द्वारा बनाए गए अध्यादेश संसद के विधान की ही तरह होते हैं, लेकिन अध्यादेश अस्थायी होता है. राष्ट्रपति अध्यादेश अपनी मंत्रिपरिषद् की सलाह से जारी करता है. संसद का अधिवेशन होने पर अध्यादेश संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए. यदि संसद उस अध्यादेश को अधिवेशन प्रारंभ होने की तिथि से छः सप्ताह के अन्दर पारित नहीं कर देती, तो वह स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाएगा. 44वें संविधान संशोधन द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि राष्ट्रपति के अध्यादेश निकालने की परिस्थितियों को असद्भावनापूर्ण होने का संदेह होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है.
न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers):
राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को तथा अपराधी को मृत्यु दंड दिए जाने की स्थिति में क्षमा दान दे सकता है. दंड को कम कर सकता है, दंडादेश की प्रकृति को बदल सकता है. दंड को निलंबित करने का भी राष्ट्रपति को अधिकार है.
सैन्य शक्तियाँ (Military Powers):
राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है. वह तीनों सेनाओं के सेना अध्यक्षों की नियुक्ति करता है. उसे युद्ध या शांति की घोषणा करने, तथा रक्षा बलों को नियोजित करने का अधिकार है. लेकिन उसके ये अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं.
राजनयिक शक्तियाँ (Diplomatic Powers):
राष्ट्रपति संसद की विधि के अधीन राजनयिकों की विदेशों में नियुक्ति करता है. बाहर के राजनयिकों के परिचय-पत्र ग्रहण करता है. संसद की विधि के अधीन राष्ट्रपति को विदेशों से मंत्रियों की सलाह के अनुसार करार और संधि करने का अधिकार है.
परामर्श शक्तियाँ (Consultative Powers):
राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है, लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है.
drashti5:
hu pn msti j krti ti....
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प्रधानमंत्री की शक्तियां कुछ एसी होती है।
hope this helps.........
hope this helps.........
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