prakriti mein anushasan 100 words pls
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प्रातःकाल होते ही जैसे कमरे की खिड़की से सूर्य की लालिमा , अलसाए चेहरे पर पड़ती है ,मैं जागने को आतुर हो उठती हूँ । बिस्तर पर रज़ाई को एक और फेंक झट -से उगते सूर्य से पहली सिख मिलती है -मुस्कराओ और काम में लग जाओ ।
चिड़ियों का चहचहाना ,मुर्गे की कुकड़ू -कूँ ना जाने शरीर में कैसे स्फूर्ति दाल देती है । अपने दो पंखों के सहारे कितनी ऊँची -ऊँची नभ में उड़ान भर लेते हैं । क्या हमारे पास इन पंक्षियों से ज्यादा साधन नहीं ? हाँ फिर हम अपनी उड़न में इनसे पीछे क्यों रह जातेहैं ?
ऋतुएँ अपना काम समय पर करती हैं ,जिस क्रम में उन्हें ईश्वर द्वारा बंधा गया है ,बिना किसी रिश्वत ,तू -तू , मैं -मैं के ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाए रखतीं हैं । दूसरी तरफ हम हैं कि बस की क़तर में भी सहनशक्ति नहीं रख पाते । प्रकृति यह सञ्चालन किसी हाईटेक सरकार द्वारा नहीं होता ।
वृक्ष ,पेड़ -पौधे -कभी अपने फल -फूल पर घमंड नहीं करते ,ये तो निःस्वार्थ सेवा करतें हैं ।मनुस्यों द्वारा छोड़ी कार्बनडाइऑक्साइड ग्रहण कर ,ताजे फल -फूल बांटते है । कभी यह नहीं कहते -यह मेरा इलाका है ,वह तुम्हारा । यह मेरी जमीं है -तुम छाया के हक़दार नहीं ।
नदियां निरंतर बहती रहती हैं -रह में कितने ही रोड़े क्यों न आए ,उसका काम है बहना ,बहती रहती है । मधुर संगीत के साथ बहना इसकी शान है ।
दिन के पहरों का बदलना 'परिवर्तनशीलता " का परिचायक है । सुबह ,दोपहर ,संध्या और रजनी -विशाल अनुशासन को दर्शाती हैं । एक रत आराम न करो तो शरीर शिथिल पद जाता है । समय के अनुसार हमारे विचार व रहन -सहन में परिवर्तन आना जरुरी है ।
तारे धरती -से कितने ही दूर क्यों ना हो -अपनी झिलमिलाहट द्वारा इससे अपना सघन रिश्ता बनाये रखतें हैं ।
रिश्तों को निभाना हम इनसे सीखें ।
गहन अँधेरे के बीच चाँद की चांदनी जब प्रकाश बिखेरती है तो"'आशा " को जन्म देती है । चांदनी कहती है शीतल रहो। नीरस ना होओ , आशा का पल्लू थामे रहो ,सफलता जरूर मिलेगी ।
बादलों का गड़गड़ाना , बिजली का चमकना -जीवन की मुसीबतों से जगह कराता है । मुसीबतें अति है ,चली भी जाती है , घबराना नहीं ।
खुले मैदान में दिन -भर चरने के बाद गायें भी गोधूलि होते ही अपने घरों को चल देती हैं । उन्हें भी स्वतंत्रता की सीमा का एहसास है । अपने मालिक के साथ अपनत्व है ।
किसी की स्वतंत्रता का हनन करने का नतीजा प्रकृति से सीखें । प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर इसका कुप्रकोप भुगतना पड़ता है । ईश्वर ने इसकी संरचना की हमारी सुरक्षा के लिए ,ना की उसे उजड़ने के लिए
प्राकृतिक सौंदर्य शांति देता है । बड़े -बड़े ऋषि -मुनियों ने इसी प्रकृति के बीच आराधना की व स्वयं को समर्पित किया ।
क्या हम हवा -पानी के बिना जीवित रह सकते हैं ? फिर इन्हें दीक्षित करने का अधिकार हमें किसने दिया ?
रोजमर्रा की जिंदगी में प्रदुषण से स्वच्छ हवा दूषित हो रही हैं । पानी अनेक बिमारियों की जड़ बनता जा रहा है । क्यों ? क्योंकि हमने इसमें संक्रमण फैलाया है ।
अन्त में मैं यही कहूँगी प्रकृति के अनुशासन को समझें और जीवन में खुशियां लाएं ।इसके प्रभाव को गुणे और स्वच्छ ,सुन्दर और स्वस्थ्य जीवन बिताएं ।
चिड़ियों का चहचहाना ,मुर्गे की कुकड़ू -कूँ ना जाने शरीर में कैसे स्फूर्ति दाल देती है । अपने दो पंखों के सहारे कितनी ऊँची -ऊँची नभ में उड़ान भर लेते हैं । क्या हमारे पास इन पंक्षियों से ज्यादा साधन नहीं ? हाँ फिर हम अपनी उड़न में इनसे पीछे क्यों रह जातेहैं ?
ऋतुएँ अपना काम समय पर करती हैं ,जिस क्रम में उन्हें ईश्वर द्वारा बंधा गया है ,बिना किसी रिश्वत ,तू -तू , मैं -मैं के ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाए रखतीं हैं । दूसरी तरफ हम हैं कि बस की क़तर में भी सहनशक्ति नहीं रख पाते । प्रकृति यह सञ्चालन किसी हाईटेक सरकार द्वारा नहीं होता ।
वृक्ष ,पेड़ -पौधे -कभी अपने फल -फूल पर घमंड नहीं करते ,ये तो निःस्वार्थ सेवा करतें हैं ।मनुस्यों द्वारा छोड़ी कार्बनडाइऑक्साइड ग्रहण कर ,ताजे फल -फूल बांटते है । कभी यह नहीं कहते -यह मेरा इलाका है ,वह तुम्हारा । यह मेरी जमीं है -तुम छाया के हक़दार नहीं ।
नदियां निरंतर बहती रहती हैं -रह में कितने ही रोड़े क्यों न आए ,उसका काम है बहना ,बहती रहती है । मधुर संगीत के साथ बहना इसकी शान है ।
दिन के पहरों का बदलना 'परिवर्तनशीलता " का परिचायक है । सुबह ,दोपहर ,संध्या और रजनी -विशाल अनुशासन को दर्शाती हैं । एक रत आराम न करो तो शरीर शिथिल पद जाता है । समय के अनुसार हमारे विचार व रहन -सहन में परिवर्तन आना जरुरी है ।
तारे धरती -से कितने ही दूर क्यों ना हो -अपनी झिलमिलाहट द्वारा इससे अपना सघन रिश्ता बनाये रखतें हैं ।
रिश्तों को निभाना हम इनसे सीखें ।
गहन अँधेरे के बीच चाँद की चांदनी जब प्रकाश बिखेरती है तो"'आशा " को जन्म देती है । चांदनी कहती है शीतल रहो। नीरस ना होओ , आशा का पल्लू थामे रहो ,सफलता जरूर मिलेगी ।
बादलों का गड़गड़ाना , बिजली का चमकना -जीवन की मुसीबतों से जगह कराता है । मुसीबतें अति है ,चली भी जाती है , घबराना नहीं ।
खुले मैदान में दिन -भर चरने के बाद गायें भी गोधूलि होते ही अपने घरों को चल देती हैं । उन्हें भी स्वतंत्रता की सीमा का एहसास है । अपने मालिक के साथ अपनत्व है ।
किसी की स्वतंत्रता का हनन करने का नतीजा प्रकृति से सीखें । प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर इसका कुप्रकोप भुगतना पड़ता है । ईश्वर ने इसकी संरचना की हमारी सुरक्षा के लिए ,ना की उसे उजड़ने के लिए
प्राकृतिक सौंदर्य शांति देता है । बड़े -बड़े ऋषि -मुनियों ने इसी प्रकृति के बीच आराधना की व स्वयं को समर्पित किया ।
क्या हम हवा -पानी के बिना जीवित रह सकते हैं ? फिर इन्हें दीक्षित करने का अधिकार हमें किसने दिया ?
रोजमर्रा की जिंदगी में प्रदुषण से स्वच्छ हवा दूषित हो रही हैं । पानी अनेक बिमारियों की जड़ बनता जा रहा है । क्यों ? क्योंकि हमने इसमें संक्रमण फैलाया है ।
अन्त में मैं यही कहूँगी प्रकृति के अनुशासन को समझें और जीवन में खुशियां लाएं ।इसके प्रभाव को गुणे और स्वच्छ ,सुन्दर और स्वस्थ्य जीवन बिताएं ।
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