Hindi, asked by chouhanbhavyanshi18, 4 months ago

Prarthna ka mahatva par 100-150 shabdo me anuched

Answers

Answered by Anonymous
3

Answer:

प्रार्थना मनुष्य की श्रेष्ठता की प्रतीक है क्योंकि यह उसके और परमात्मा के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाती है । हरएक धर्म में प्रार्थना का बड़ा महत्व है । ... प्रार्थना में परमेश्वर की प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, धन्यवाद, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की ईच्छा, दूसरों का हित चिंतन आदि होते हैं ।

Explanation:

hope you appreciate this ans

Answered by katariam76
2

Explanation:

मानव के अन्य प्राणियों से अधिक सामर्थ्यवान होने का प्रतीक प्रार्थना हैं. जो मनुष्य मात्र को अपने इष्ट से सम्बन्ध स्थापित करवाती हैं. विश्व के सभी धर्मों में प्रार्थना को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं. यहाँ तक कि आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने का आधार प्रार्थना को ही माना हैं. महापुरुषों एवं संतों ने भी प्रार्थना के महत्व पर बल दिया है.

जीवन में प्रार्थना के कई ध्येय होते हैं. मुख्य रूप से धार्मिक अथवा अपने भगवान् से की गई प्रार्थना के उद्देश्य अपने परमेश्वर की प्रशंसा, उनकी स्तुति, साधुवाद, कोई कामना, पथ प्रदर्शन की गुजारिश अथवा स्वयं या सर्व हित की भावना निहित होती हैं. प्रार्थना करने की कई विधियाँ है कभी गाकर बजाकर तो कभी मौन रूप से भी प्रार्थना की जाती हैं. प्रार्थना का स्वरूप व्यक्तिगत या सामूहिक हो सकता हैं. यह किसी पवित्र ग्रंथ के पाठन या एकाकार ध्यान मुद्रा में भी हो सकती हैं.

आमतौर पर लोग प्रार्थना के लिए माला, मंत्र, गीत या संगीत का उपयोग करते हैं. मगर इन सभी साधनों के सिवाय भी प्रार्थना की जा सकती हैं. प्रार्थना की सभी विधियां अपने आप में श्रेष्ठ है तथा किसी भी विधि को अपनाया जा सकता हैं. सरल शब्दों में समझे तो प्रार्थना ईश्वर एवं भक्त के मध्य का वार्तालाप हैं. जिसमें साधक अपने परमेश्वर से जीवन से हालातों को स्पष्ट रूप से बया करता है तथा अपनी इच्छाओं को बताता हैं.

सभी का मानना है कि सच्चाई, सफाई, तन्मयता और समर्पण-भाव से की गई प्रार्थना को अधिक प्रभावी समझा जाता हैं. ऐसा माना जाता हैं कि प्रार्थना के लिए सभी स्थान व समय स्वीकार्य होते हैं. इसे कभी भी और कही भी किया जा सकता हैं. मगर बहुत से लोग सवेरे दिन की शुरुआत और शाम के समय ही प्रार्थना करते हैं. इसके लिए चुना गया स्थल पूर्ण शांत, स्वच्छ होना भी आवश्यक माना गया हैं.

एक अच्छी प्रार्थना के लिए एकान्तता का होना बेहद जरुरी हैं. जिसमें साधक का ध्यान न बटे तथा अधिक शोरगुल न हो. सभी धर्मों के अपने अपने पूजा स्थल हैं. मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, चर्च आदि पूजा स्थल माने गये हैं. प्रकृति के वातावरण में भी मन की शान्ति व एकाग्रता के साथ प्रार्थना करने का अच्छा वातावरण मिलता हैं.

व्यक्ति को प्रार्थना करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं. इससे मन को आत्मबल, विश्वास, प्रेरणा तथा आशा मिलती हैं. एक आम व्यक्ति में प्रार्थना से दया, अहिंसा, ममता, परोपकार, सहनशीलता, सहयोग, सादगी, उच्च विचार से मानवीय गुणों का जन्म होता हैं. तथा वह एक उत्कृष्ट चरित्र का निर्माण कर सकते हैं. विपत्ति के समय में इन्सान को प्रार्थना से मन को बल तथा आत्म विश्वास और शान्ति के भाव मिलते हैं. ईश्वरीय सहयोग की आशा से उनकी उलझने समाप्त हो जाती है उसे आत्मिक शक्ति मिलती है तथा दुःख के दिन में भी आशा की रोशनी नजर आती हैं.

प्रार्थना एक बड़ी आध्यात्मिक क्रियाकलाप तो है ही साथ ही इसका अपना बड़ा मनोवैज्ञानिक महत्व भी हैं. इससे मन को शांति तथा मन को एकाग्र करने तथा अपने संस्कारों तथा परम्पराओं के परिवर्द्धन में भी एक आम जरिया हैं. धैर्य, ऊर्जा, पवित्रता, चरित्र की दृढ़ता के गुण विकसित किये जा सकते हैं. प्रार्थना में स्वहित के भाव के साथ परहित के भाव तथा औरों की भलाई के भाव भी छिपे होते हैं. विश्व के कई बड़े संतों, महापुरुषों एवं विद्वानों ने प्रार्थना के दम पर ही कई असम्भव कार्य कर दिखाए.

किसी महान व्यक्ति के जीवन में प्रार्थना के महत्व को समझना हो तो महात्मा गांधी का जीवन इसका एक उदाहरण हैं. वे अपने दिन का एक बड़ा भाग सुबह और शाम की सर्वधर्म प्रार्थना में गुजारते थे. वे अपने हर दिन की शुरुआत सार्वजनिक प्रार्थना सभा से करते थे. यह प्रार्थना की ही ताकत थी कि वे सदी के नायक कहलाए.

Similar questions