Pratiyogita ka mahatva anuchchhed likhiye
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प्रतियोगिता का अर्थ है आगे बढ़ने की होड़। प्रतियोगिता के वास्तव में दो रूप होते हैं - स्वयं आगे बढ़ने और दूसरों को पीछे हटाना। स्वयं आगे बढ़ना प्रतियोगिता का रचनात्मक और कल्याणकारी स्वरुप है, जबकि दूसरों को पीछे हटाना प्रतियोगिता का विनाशकारी स्वरुप है। दूसरों से आगे बढ़ने और बेहतर बनने की इच्छा ही मनुष्य को उन्नति के लिए प्रेरित करती है और उससे परिश्रम करवाती है। प्रतियोगिता से मिली चुनौती से हमें अपने आपको दूसरों की तुलना में सुधारना पड़ता है और उनसे आगे निकलने के लिए भरपूर प्रयास करने पड़ते हैं। प्रतियोगिता से होने वाला एक लाभ तो यह है की इससे मनुष्य स्वयं का मूल्यांकन करता है और अपनी नयी खूबियों को पहचानता है। दूसरा लाभ यह है की जब वह अन्य लोगों की तुलना में कुछ नही कर पाता है तो उसका व्यर्थ का घमंड टूटता है। उसे पता चल जाता है की संसार में उससे भी अधिक प्रतिभाशाली लोग हैं। वह उनका सम्मान करना सीखता है। इस प्रकार समाज को प्रतियोगिता से लाभ ही मिलता है।