Hindi, asked by komalkantia52920, 11 months ago

Prem vistar aur swarth sakuchan par nibhand 750word​

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Answered by shishir303
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                          प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है

इस दुनिया में प्रेम ही विस्तार हैं, प्रेम ही सब कुछ है, जो हमें जीना सिखाता है। स्वार्थ तो बस संकुचन हैं, जो हमें मृत्यु की ओर ले जाता है। इसलिये प्रेम इसलिए जीवन का एकमात्र नियम है। इसलिए दूसरों से सदैव प्यार करो, स्वार्थी मत बनो।

हमारे विचार और हमारा दृष्टिकोण हमारे चरित्र और आचरण की दर्पण है। हमारे विचार ही हमें सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। हमारा दृष्टिकोण जैसा होता है, वैसी ही दुनिया हमें नजर आती है। अगर हमारे अंदर प्रेम है तो दुनिया हमें सुंदर नजर आयेगी हर व्यक्ति अच्छा दिखेगा। अगर हमारे अंदर केवल स्वार्थ की भावना है तो हमें दुनिया मे अनेक कमियां नजर आ सकती हैं। जिस-जिस बात हमारे स्वार्थ की सिद्धि नही होती हो वो हमें गलत ही नजर आयेगा क्योंकि हम केवल अपने स्वार्थ में सिमटे होते हैं और केवल उसी नजर से दुनिया का आकलन करते हैं।

ये जीवन बडा ही सुंदर है। सबसे पहले इस जीवन को प्रेम से जीना सीखें। इस बहुमूल्य जीवन को अपने स्वार्थ की अग्नि में जलाकर नष्ट न करें। दुनिया को प्रेम के नजरिये से देखने की कोशिश करेंंगे तो दुनिया विशाल होती जायेगी और अगर स्वार्थ के नजरिये से देखेंगे तो दुनिया छोटी जायेगी।

अपने आप को सारे बंधनों से आजाद कर दो और प्रेम को अनुभव करो। यह सोचो कि इस जगत में प्रेम ही प्रेम व्याप्त है। उस प्रेम को आत्मसात करो और चारों तरफ उस प्रेम को फैलाने में लग जाओ। तुम्हारा स्वयं ही विस्तार होता जाएगा। तुम अगर अपने स्वार्थ में उलझ कर रह गए तो तुम शीघ्र ही नष्ट हो जाओगे।  

सोचो इस दुनिया में पहले भी कितने महापुरुष हुए हैं जिनका नाम आज भी हम लेते हैं क्योंकि उन्होंने प्रेम को बांटा। ऐसे अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने अनेक सामाजिक कार्य किए। लोगों की भलाई के कार्य किए। उन्होंने यह कार्य क्यों किये? क्योंकि उनके अंदर प्रेम भरा था और इस प्रेम की भावना के वशीभूत होकर ही उन्होंने लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन खपा दिया और आज भी हम उनको याद करते हैं।  

इसलिए कह सकते हैं कि प्रेम समय के बंधनों के पार चला जाता है। प्रेम का स्वरूप इतना विस्तृत है कि वह भौतिक क्षेत्र ही नहीं बल्कि समय के बंधनों को भी पार कर देता है। जिन लोगों ने सदैव प्रेम बरसाया, उनको आज भी हम याद करते हैं चाहे वह सैकड़ों साल पहले के लोग हो या हजारों साल पहले के लोग।  

अगर तुम अपने स्वार्थ में ही सिमट कर रह जाओगे। तुम्हारा अंत ज्यादा दूर नही। जो लोग स्वार्थी थे। वह अपने उस विशेष समय तक ही सिमट कर रह गए उनके बाद उनका नाम लेने वाला कोई नहीं रहा। इसलिए सदैव प्रेम करो! प्रेम करो! प्रेम करो! लोग तुम्हें हर पल याद रखेंगे तुम्हारा स्वरूप विस्तृत हो जाएगा। अगर स्वार्थ में रहोगे तो संकुचित होते जाओगे और तुम्हारे बाद तुम्हारा अस्तित्व समाप्त। तुम्हें कोई नहीं याद करने वाला।

प्रेम करो! प्रेम करो! प्रेम करो! तुम स्वतः ही विस्तृत होते जाओगे, तुम्हारा दायरा बढ़ता जायेगा, लोग तुम्हारे निकट आना चाहेंगे। तुमसे जुड़ना चाहेंगें, उनके दिलों में बसोगे तो ये तुम्हारा विस्तार ही तो है। लोग तुम्हें तुम्हारे बाद भी याद करेंगे। स्वार्थी रहोगे तो कोई तुम्हारे पास भी न फटकेगा और तुम खुद में ही सिमट कर रह जाओगे और एक यूं ही काल-कवलित हो जाओगे। फिर तुम कौन थे किसी को याद नही रहेगा।

इसलिये तो प्रेम स्वयं के विस्तार की कुंजी है, जीवन्तता का प्रतीक है। स्वार्थ तो बस सकुंचन है, मृत्यु का द्वार है।

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