Hindi, asked by avneetkaur21062003, 5 hours ago

premghan की छाया समिति कथ्य स्पष्ट कीजिए​

Answers

Answered by dpratiksha2002
0

Answer: प्रेमघन की छाया स्मृति ‘  पाठ का सार

शुक्ल जी के बचपन का साहित्यिक वातावरण –

शुक्ल जी को बचपन से घर में साहित्यिक वातावरण मिला। क्योंकि उनके पिता फारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे , तथा पुरानी हिंदी कविता के प्रेमी थे।  वह प्रायः रात्रि में घर के सब सदस्यों को एकत्रित करके रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका को पढ़कर सुनाया करते थे।

भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक उन्हें अत्यंत प्रिय थे।

 

बचपन के कारण शुक्ल जी सत्य हरिश्चंद्र नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र तथा भारतेंदु हरिश्चंद्र में अंतर समझ नहीं पाते थे।

चौधरी प्रेमघन के प्रथम दर्शन –

प्रेमघन से मिलने के लिए लेखक शुक्ल जी ने बच्चों की टोली एकत्रित की।  उसमें प्रेमघन के घर को जानने वाला बालक आगे-आगे नेतृत्व करता हुआ चल रहा था , उसके पीछे सभी साथी चल रहे थे। रास्ते में शुक्ल जी कौतुक भरी निगाहों से उस राह तथा उसमें पडने वाले सभी दृश्यों को बारीकी से अध्ययन करते हुए चल रहे थे। उनके मन में आज चौधरी प्रेमघन से मिलने की तीव्र उत्कंठा थी।

पिता की बदली मिर्जापुर में होने पर अपने घर से प्रेमघन के घर की निकटता रहने के कारण शुक्ल जी को अपनी मित्र मंडली के साथ उन्हें प्रथम दर्शन हुए। जिसमें लता प्रधान के बीच मूर्ति वत खड़े , कंधों पर बाल बिखरे और एक हाथ ब्रह्मदेव के खंभे पर था।

शुक्ल जी की साहित्य के प्रति बढ़ती रूचि –  

पंडित केदारनाथ के पुस्तकालय से पुस्तक के लाकर पढ़ते-पढ़ते शुक्ल जी की रुचि हिंदी के नवीन एवं आधुनिक साहित्य के प्रति बढ़ गई व उनकी गहरी मित्रता केदारनाथ जी से भी हो गई। अपनी युवावस्था तक आते-आते शुक्ल जी को समवयस्क  हिंदी प्रेमी लेखकों की मंडली भी मिल गई।

जहां शुक्ल जी रहते थे , वह उर्दू भाषी वकीलों , मुख्तारों आदि की बस्ती थी। लेखक अपनी मित्र मंडली के साथ जब भी कोई बातचीत करते तो उस बातचीत में निस्संदेह शब्द का बहुत प्रयोग होता था। जिसे सुन सुनकर उस बस्ती के लोगों ने इस लेखक मंडली का नाम निस्संदेह मंडली रख दिया था।

चौधरी प्रेमघन की व्यक्तिगत विशेषता –

प्रेमघन जी को खासा हिंदुस्तानी रहीस बताया गया है। उनकी हर बात में तबीयतदारी टपकती थी। बसंत पंचमी , होली आदि त्योहारों पर उनके घर में खूब नाच-रंग और उत्सव हुआ करते थे। उनकी बातें विलक्षण वक्रता व्यंग्यात्मक हुआ करती थी। चौधरी साहब प्रायः लोगों को बनाया करते थे अर्थात उनको बेवकूफ बनाने की कोशिश करते थे।

वह प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ भाषा के विद्वान भी थे। वह बातों में हास्य और व्यंग्य का समावेश रखते थे।

 

Similar questions