prerna and uddeshya of vinay ke pad
if anyone has hindi sahitya sagar guide please provide me the moral and uddeshya of this poem written by Tulsidas.
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विनय के पद महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित भक्ति पूर्ण रचना है जिसमें तुलसीदास जी ने अपने इष्ट श्री राम के प्रति अपने भक्ति भाव को प्रकट किया है । तदर्थ तुलसी के अनुसार इस संसार में श्रीराम के समान कोई भी उदार नहीं है । राम जी की उदारता कि यही पराकाष्ठा है कि वे अपने भक्तों पर अहैतुकी कृपा करते है । इसी महनीय कृपा और करूणा को उजागर करना तुलसी का उद्देश्य है । इसके लिए उन्होंने पद में बताया है कि बड़े -बड़े ऋषि मुनियों को जप - तप की कठिन साधना के बाद भी जो गति नही मिलती वो जटायु और शबरी ने राम की सहज भक्ति करके प्राप्त कर ली ।
तुलसीदासजी ने प्रेरणा दी कि जिसे श्रीराम प्रिय नहीं है उसका त्याग कर देना चाहिए । भले ही वह आपका कितना ही सगा या निकटवर्ती क्यों न हो । तदर्थ उन्होंने विभीषण, प्रह्लाद, श्रीभरतजी व्रजगोपियों इत्यादि का उदाहरण प्रस्तुत किया है । उनके अनुसार वही हमारा सुहृद है जो हमारे रामजी की भक्ति करता है या उनसे प्रेम करता हो । तुलसीदास जी के पद के अनुसार ऐसा अंजन अर्थात काजल किस काम का जिसके कारण हमें हमारी आंख गंवानी पड़े इसलिए हमें वही कार्य साधना चाहिए जिसमें हमारा कल्याण हो और हमारा कल्याण राम पद में नेह बढ़ाने से होगा ।