presentation on ears in hindi
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Hope it helps....!!!
outer ear:-
यह कान का सबसे बाहर का भाग होता है । बाह्य कान के दो भाग होते हैं- एक है कणजिली और कर्ण पल्लव तथा दूसरा भाग है ‘बाह्य कर्ण- कुहर’ । कर्णाजली बाहर की ओर स्थित है ।
कर्ण का सीप-सदृश यह भाग कुछ-कुछ अर्धचन्द्राकार-सा होता है । इसका ऊपर का भाग ‘पीत-प्रत्यास्था उपास्थि’ से निर्मित रहता है । इसका निचला भाग अधिक कोमल होता है, तथा यह ‘वसा संयोजक ऊतक’ से निर्मित होते हैं ।
Middle ear:-
यह कान के परदे से भीतर की ओर, एक समान गुहा के रूप में होता है । इस गुहा को कर्ण गुहा कहते हैं । इसमें हवा भरी रहती है । इसके चारों ओर की अस्थि पर महीन श्लेष्मिका मढ़ी रहती है । यह गुहा एक चौड़ी नली द्वारा नाक में खुलती है |
Inner ear:-
यह कान का सबसे अदरूनी व अन्तिम भाग होता है, तथा यह सुनने की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है । अन्त: कर्ण अर्धपारदर्शक झिल्ली की बनी एक जटिल कलागहन के रूप में होता है ।
कलागहन में तीनों अर्ध-वृत्ताकार नलिकाओं की रचनाएँ पायी जाती हैं, जो परस्पर 90० के कोण पर निकलती हैं, और घूमकर वापस इसी में खुल जाती हैं । ये अच्छे-वृत्ताकार नलिकाएँ जहाँ खुलती हैं, वह भाग कुछ फैला हुआ होता है । इस फूले भाग को ऐम्पुला कहते ह |
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Best Wishes.....!!!!!!
outer ear:-
यह कान का सबसे बाहर का भाग होता है । बाह्य कान के दो भाग होते हैं- एक है कणजिली और कर्ण पल्लव तथा दूसरा भाग है ‘बाह्य कर्ण- कुहर’ । कर्णाजली बाहर की ओर स्थित है ।
कर्ण का सीप-सदृश यह भाग कुछ-कुछ अर्धचन्द्राकार-सा होता है । इसका ऊपर का भाग ‘पीत-प्रत्यास्था उपास्थि’ से निर्मित रहता है । इसका निचला भाग अधिक कोमल होता है, तथा यह ‘वसा संयोजक ऊतक’ से निर्मित होते हैं ।
Middle ear:-
यह कान के परदे से भीतर की ओर, एक समान गुहा के रूप में होता है । इस गुहा को कर्ण गुहा कहते हैं । इसमें हवा भरी रहती है । इसके चारों ओर की अस्थि पर महीन श्लेष्मिका मढ़ी रहती है । यह गुहा एक चौड़ी नली द्वारा नाक में खुलती है |
Inner ear:-
यह कान का सबसे अदरूनी व अन्तिम भाग होता है, तथा यह सुनने की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है । अन्त: कर्ण अर्धपारदर्शक झिल्ली की बनी एक जटिल कलागहन के रूप में होता है ।
कलागहन में तीनों अर्ध-वृत्ताकार नलिकाओं की रचनाएँ पायी जाती हैं, जो परस्पर 90० के कोण पर निकलती हैं, और घूमकर वापस इसी में खुल जाती हैं । ये अच्छे-वृत्ताकार नलिकाएँ जहाँ खुलती हैं, वह भाग कुछ फैला हुआ होता है । इस फूले भाग को ऐम्पुला कहते ह |
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