Hindi, asked by biggyboo2168, 1 year ago

Prithabi kish chij par tiki hea

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Answered by Shobhit1903
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on the plate of copper I think so
Answered by janvi47
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महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से एक 'मरीचि' थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया। कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से विवाह किया। उनमें से एक का नाम कद्रू था जिनसे 1000 बलशाली नाग (सर्प नहीं) पैदा हुए जिसमें सबसे बड़े भगवान् शेषनाग थे। कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे। इनका एक नाम अनन्त भी है।


विनता तथा कद्रु एक बार कहीं बाहर घूमने गयीं। वहाँ उच्चैश्रवा नामक घोड़े को देखकर दोनों की शर्त लग गयी कि जो उसका रंग गलत बतायेगी, वह दूसरी की दासी बनेगी। अगले दिन घोड़े का रंग देखने की बात रही। विनता ने उसका रंग सफेद बताया था तथा कद्रु ने उसका रंग सफेद, पर पूंछ का रंग काला बताया था। कद्रु के मन में कपट था। उसने घर जाते ही अपने पुत्रों को उसकी पूंछ पर लिपटकर काले बालों का रूप धारण करने का आदेश दिया जिससे वह विजयी हो जाय।


शेषनाग का धर्म के प्रति दृढ़ता !!!

शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता व भाइयों ने मिलकर विनता के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।

ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया।


शेषनाग की विशेषताएं !!!

उनके हजार सर थे ।

उनका रंग सेफ था ।

उनकी आंखे गुलाबी कमल की तरह थी ।

उनके पास एक खास क़िस्म की मणि है ।

उनका नाम अनंत भी है मतलब समय से पार ।

बेहद शक्तिशाली और फुर्तीले ।

कहीं भी आने जाने की छमता ।

धर्म के प्रति सजग और अडिग (युधिस्ठिर से भी बड़े क्योंकि एक भी गलती नहीं) ।

कठोर तप व्रती ।

1000 फण और उनके मुह हमेशा खुले होने के कारन भय देने वाले चेहरे के बावजूद करुणा सागर ।

अनंत छमताओं के बाद भी सहज और सेवक स्वभाव ।


पृथ्वी !!!

जैसा की विज्ञानं ने साबित किया है की पृथ्वी सूर्य से निकली है और अपनी जग पे घूमने के कारन संतरे की तरह है. आप तस्वीर को देखे पृथ्वी के कोर में रहना संभव नहीं है इनर कोर में भी रहना संभव नहीं है और इन दोनों अस्थिर होने पे पृथ्वी के ऊपरी परत का स्थिर होना संभव नहीं है. कोर हिला इनर कोर हिला तो टेकटॉनिक प्लेट्स हिली तो भूगोल बदलेगा इतना विज्ञानं हम सब समझतें है तो एक नाग ने आखिर पृथ्वी को कैसे संभाल होगा जैसा ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया।


पृथ्वी को फन पे रखना !!!

किसी के सर पे आखिर कबतक राखी जा सकती है ये थोड़ा अटपटा लगता है और अगर है तो अंतरिछ में जाने पे शेषनाग पृथ्वी के साथ दिखाई देने चाहिए थे. कभी दिखे ???

किसी वैज्ञानिक ने कभी कहा किसी अंतरिछ यात्री ने कभी माना. तो ये बात थोड़ी अटपटी लगाती है पर मैं आस्था को मन नहीं कर रहा.

ब्रम्हा जी ने कहा - "तुम आगे बड़ो पृथ्वी तुम्हे रास्ता देगी." तो वो अंतरिछ में क्यों जायेंगे ???


पृथ्वी को मुह में रखना !!!

जब कालिया नाग जो की शेषनाग से कई गुना छोटा हो के भी इतनी विशाल नदी यमुना में रह के सिर्फ अपनी सांस से यमुना को जहरीला कर सकता है तो पृथ्वी को पिगल जाएगी शेषनाग के मुह में इसलिए ये भी संभव नहीं लगता


पृथ्वी को अपनी ठुड्डी और गले से दबा के रखना !!!

कोई खुद कर के देखे कोई भी वास्तु को आले और ठुड्डी से दबा के देखे ये तो संभव ही नहीं की क्योंकि ये बहुत असहज मुद्रा है


तो क्या हो सकता है ???

एक नाग कितने प्रकार से पृथ्वी को संभल सकता है. तो एक नाग ने आखिर पृथ्वी को कैसे संभाल होगा सर पे ऐसा हम सोचते है पर ब्रम्हा जी ने कहा - "तुम आगे बड़ो पृथ्वी तुम्हे रास्ता देगी."

मतलब ये भी तो हो सकता है की पृथ्वी ने रास्ता दिया और वो पृथ्वी के अंदर चले गए. बात सिर्फ फन पे रखने की थी वो तो अंदर से भी हो सकता है. और वैसे भी सांप की प्रकृति बिल में रहने की होती है और ब्रम्हा जी ने भी यही कहा. अगर पृथ्वी रास्ता दे तो आपने अंदर ही देगी तो बिल ही हुआ न. और सहारा आंध्र से चाहिए क्योंकि पृथ्वी के अंदर का भाग अस्थिर है जिससे बाहर अस्थिरता है !!!


मुद्रा !!!

चाहे हमला करना हो या आराम करना हो सांप की मुद्रा वृता कार ही होती है मतलब ह्यबेरनॅशन में भी सांप गोल नुमा हो के बैठता है. आब शेषनाग का राण सफ़ेद है तो सफ़ेद राण के प्राणी के लिए बर्फीला या अंधरी जग सबसे उपयुक्त है. ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान भी हिमालय मैं ही दिया था और पृथ्वी के अंदर अँधेरा ही है जहाँ वो अपनी मणि के प्रकाश मैं रहते होंगे. आ आँखे कमल की तरह कहो या गुलाबी क्योंकि ये सांकेतिक सबद है तो काम रौशनी में गुलाबी आँखे बेहतर देखेंगी. और अगर पृथ्वी के तीसरे सतह को कोई अपनी कुंडली से बांध ले तो वो बंधन पृथ्वी को स्थिरता प्रदान करेगा क्योंकि आंध्र चाहे जो हलचल हो उप्पेर आसार काम हो जायेगा. ऐसे उदहारण आज कल भवन निर्माण में मिलतें है


पुराणों का विवरण !!!

इस हमारे पुराणों में भी लिखा है. और ये बात भी लिखी है की उनके प्रकार हैं

अतल

वितल

नितल

गभस्तिमान

महातल

सुतल

पाताल

तो आब लगत है की हाँ ये हो सकता है शेषनाग हैं पर वो बहार नहीं बल्कि अंदर से पृथ्वी को सहारा दे रहें है और साड़ी बातों को ध्यान (विज्ञानं और गाथा) में रखे तो ये संभव सा लगता है.


माह किताबों का संदर्भ !!!

विष्णु पुराण

ब्रम्हा पुराण

महाभारत

गरुण पुराण

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