Prithvi ke Anmol grah
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हिमाच्छादित पर्वत शिखर, हरे-भरे घने जंगल, तपते सूखे रेगिस्तान, मन-मोहक मैदान, लहलहाती शस्य-श्यामला फसलें, पहाड़ों से उतर कर मैदानों की धरती को सींचती-बहती सदानीरा नदियां, कल-कल निनाद करते झरने और तट से टकराती विशाल सागर की लहरों का गर्जन! सारी धरती पर जीवन का स्पंदन। धरती को गरमाती, जीवन जगाती सूरज की किरणें, नीले आसमान में अचानक घिर कर रिमझिम बरसते बादल…आः कितनी सुंदर है यह पृथ्वी, यह धरती मां! सोच कर मेरा मन गुनगुना उठता है:
कहीं घने हरे जंगल, कहीं भरे गहरे दलदल
तीन तरफ सागर का जल, हर तरफ जीवन की हलचल
कहीं पंछी कलरव करते, कहीं गुनगुन भौंरों का गुंजन
कहीं हिरन कुलांचें भरते, हर तरफ जीवन की धड़कन
जीवन है बस एक, रूप हैं अनेक
जीवन तेरे रूप अनेक! जीवन तेरे रूप अनेक!
कहीं घने हरे जंगल, कहीं भरे गहरे दलदल
तीन तरफ सागर का जल, हर तरफ जीवन की हलचल
कहीं पंछी कलरव करते, कहीं गुनगुन भौंरों का गुंजन
कहीं हिरन कुलांचें भरते, हर तरफ जीवन की धड़कन
जीवन है बस एक, रूप हैं अनेक
जीवन तेरे रूप अनेक! जीवन तेरे रूप अनेक!
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