Provide summary of 'Netaji Ka Chasma' from Kshitij Hindi Textbook- Chapter 1.
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एक कंपनी में कार्यरत एक साहब अक्सर अपनी कंपनी के काम से बाहर जाते थे | हालदार साहब एक कस्बे से होकर गुजरते थे | वह क़स्बा बहुत ही छोटा था| कहने भर के लिए बाज़ार और पक्के मकान थे| लड़कों और लड़कियों का अलग अलग स्कूल था | मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति थी | मूर्ति कामचलाऊ थी पर कोशिश सराहनीय थी | संगमरमर की मूर्ति थी पर उसपर चश्मा असली था | चौकोर और चौड़ा सा काला रंग का चश्मा | फिर एक बार गुजरते हुए देखा तो पतले तार का गोल चश्मा था | जब भी हालदार साहब उस कस्बे से गुजरते तो मुख्य चौराहे पर रूककर पान जरुर खाते और नेताजी की मूर्ति पर बदलते चश्मे को देखते | एक बार पानवाले से पूछा की ऐसा क्यों होता है तो पानवाले ने बताया की ऐसा कैप्टेन चश्मे वाला करता है | जब भी कोई ग्राहक आटा और उसे वही चश्मा चाहिए तो वो मूर्ति से निकलकर बेच देता और उसकी जगह दूसरा फ्रेम लगा देता | पानवाले ने बताया की जुगाड़ पर कस्बे के मास्टर साहब से बनवाया वह मूर्ति, मास्टर साहब चश्मा बनाना भूल गए थे | और पूछने पर पता चला की चश्मे वाले का कोई दूकान नहीं था बल्कि वो बस एक मरियल सा बूढा था जो बांस पर चश्मे की फेरी लगाता था | जिस मजाक से पानवाले ने उसके बारे में बताया हालदार साहब को अच्छा न लगा और उन्होंने फैसला किया दो साल तक साहब वहां से गुजरते रहे और नेताजी के बदलते चश्मे को देखते रहे | कभी काला कभी लाल, कभी गोल कभी चौकोर, कभी धूप वाला कभी कांच वाला | एक बार हालदार साहब ने देखा की नेताजी की मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं है | पान वाले ने उदास होकर नम आँखों से बताया की कैप्टन मर गया | वो पहले ही समझ चुके थे की वह चश्मे वाला एक फ़ौजी था और नेताजी को उनके चश्मे के बगैर देख कर आहत हो जाता होगा | अपने जी चश्मों में से एक चश्मा उन्हें पहना देता और जब भी कोई ग्राहक उसकी मांग करते तो उन्हें वह नेताजी से माफ़ी मांग कर ले जाता और उसकी जगह दूसरा सबसे बढ़िया चश्मा उन्हें पहना जाता होगा | और उन्हें याद आया की पानवाले से हस्ते हुए उसे लंगड़ा पागल बताया था | उसके मरने की बात उनके दिल पर चोट कर गयी और उन्होंने फिर कभी वहां से गुजरते वक़्त न रुकने का फैसला किया | पर हर बार नज़र नेताजी की मूर्ति पर जरुर पड़ जाती थी | एक बार वो यह देख कर दंग रह गये की नेताजी की मूर्ति पर चश्मा चढ़ा है | जाकर ध्यान से देखा तो बच्चो द्वारा बनाया एक चश्मा उनकी आँखों पर चढ़ा था | इस कहानी से यह बताने की कोशिश की गयी है की हम देश के लिए कुर्बानी देने वाले जवानों की कोई इज्जत नहीं करते| उनके भावनाओं की खिल्ली उड़ा देते और न ही हमारे स्वतंत्रता के लिए जान लगाने वाले महान लोगों की इज्ज़त करते हैं | पर बच्चों ने कैप्टन की भावनाओं को समझा और नेताजी की आँखों को सुना न होने दिया |
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पाठ का उद्देश्य देश-प्रेम का वर्णन करना है।
देश का निर्माण कोई अकेला नहीं कर सकता है। जब-जब देश का निर्माण होता है उसमें कुछ नाम प्रसिद्ध हो जाते हैं और कुछ नाम गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। प्रस्तुत पाठ में भी यही दर्शाया गया है कि नगरपालिका वाले कस्बे के चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगवाते हैं। मूर्तिकार नेता जी की मूर्ति का चश्मा बनाना भूल जाता है। उस कस्बे में कैप्टन नाम का व्यक्ति चश्मे बेचने वाला है। उसे बिना चश्मे के नेता जी का व्यक्तित्व अधूरा लगता है। इसलिए वह उस मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगवा देता है। सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। उसके मरने के बाद नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के चौराहे पर लगी रहती है। बिना चश्मे की मूर्ति हालदार साहब को भी दु:खी कर देती है। वह ड्राइवर से चौराहे पर बिना रुके आगे बढ़ने को कहते हैं लेकिन उनकी नजर अचानक मूर्ति पर पड़ती है जिस पर किसी बच्चे द्वारा सरकंडे का बनाया चश्मा लगा हुआ था। यह दृश्य हालदार साहब को देशभक्ति की भावना से भर देता है। अत: इस पाठ का प्रमुख लक्ष्य है कि देश के निर्माण में करोड़ों गुमनाम व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान देते हैं। इस योगदान में बड़े ही नहीं अपितु बच्चे भी शामिल होते हैं।