Punar Janam kis sabji Mein paya jata hai
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konsii saji hh..pta chl jaaye to mujhe bhi bta diyo
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हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा कि गीता में कहा गया है।
वेदों में पुनर्जन्म को मान्यता है। उपनिषदकाल में पुनर्जन्म की घटना का व्यापक उल्लेख मिलता है। योग दर्शन के अनुसार अविद्या आदि क्लेशों के जड़ होते हुए भी उनका परिणाम जन्म, जीवन और भोग होता है। सांख्य दर्शन के अनुसार 'अथ त्रिविध दुःखात्यन्त निवृति ख्यन्त पुरुषार्थः।' पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा के शरीर, इंद्रियों तथा विषयों से संबंध जुड़े रहते हैं। न्याय दर्शन में कहा गया है कि जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थाएं हैं। पिछले कर्मों के अनुरूप वह उसे भोगती है तथा नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिए वह फिर जन्म लेती है।
तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' ने एक किताब लिखी है, 'पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य।' इसमें पुनर्जन्म के बारे में अच्छी विवेचना की गई है। पुनर्जन्म में रुचि रखने वाले को ओशो की किताबें जैसे 'विज्ञान भैरव तंत्र' के अलावा उक्त दो किताबें जरूर पढ़ना चाहिए।
अगले पन्ने पर पहला रहस्य...
पंच तत्वों का स्थूल शरीर और मन : हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बाद में कुछ है, जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा। आत्मा कभी नहीं मरती।
जन्म और मृत्यु के बीच में जिंदगी मानी गई है लेकिन जिंदगी तो मरने के बाद भी जारी रहती है। जन्म और मृत्यु के बीच जो सबसे बड़ी कड़ी है वह है आत्मा। आत्मा शरीर में है तो संसार है और आत्मा ने शरीर को छोड़ दिया, तो पारलौकिक संसार है। विज्ञान के लिए जन्म और मृत्यु के बीच की कड़ी आत्मा सबसे उलझा रहस्य है।
इस आत्मा से जब स्थूल शरीर छूट जाता है या इसका स्थूल शरीर जलकर नष्ट हो जाता है, तब भी उसके पास दो चीजें बच जाती हैं जिसे मन और सूक्ष्म शरीर कहते हैं। शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इस मन में उसकी बुद्धि, सभी स्मृतियां और अनुभव संरक्षित रहते हैं। मृत्यु के बाद आत्मा सूक्ष्म शरीर में रहकर अगले जन्म मिलने का इंतजार करते रहती है।
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