Pustak pardarshani ka varnan nibandh in hindi
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राजधानी दिल्ली का प्रगति मैदान एक ऐसा स्थान है, जहाँ अक्सर एक-न-एक प्रदर्शनी चलती रहती है । इस कारण वहाँ अक्सर भीड़ – भाड़ का बना रहना भी बड़ा स्वाभाविक है । प्रदर्शनी कोई हो या न हो, पर वहाँ अक्सर कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक, फिल्म शो, रंगारंग कार्यक्रम तो होते ही रहते हैं और साथ ही बच्चों के लिए मनोरंजन पार्क, अप्पू घर भी हैं ।
इसलिए में कई बार वहाँ जा चुका हूँ । लेकिन पिछले वर्ष जब मैंने सुना, समाचार पत्रों में पढ़ा भी कि इस बार वहां प्रगति मैदान में एक अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है तो पुस्तक प्रेमी होने के कारण, सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि मैं लगातार तीन दिनों तक वहाँ जाता रहा । वास्तव में, मेला और प्रदर्शन स्थल इतना विस्तृत था, दूसरे इतने अधिक प्रकाशकों ने वहाँ पर अपने स्टॉल लगा रखे थे कि सब के सब एक दिन में देख पाना सम्भव ही नहीं था।
हम सभी सहपाठी अपने विद्यालय की ओर से एक अध्यापक महोदय की ओर से प्रदर्शनी देखने गये । इस कारण टिकट आदि में रियायत मिल गई । प्रदर्शित की गई पुस्तकों के आकार-प्रकार, रूप-रंग और शीर्षक आदि इतने मोहक थे कि मेरे लिए एक-एक स्टाल पर रखी प्रत्येक पुस्तक को देखना बहुत जरूरी हो गया था ।कई जगह कुछ प्रकाशक अपने सूचीपत्र बाँट रहे थे और कुछ लोग अपनी विशेष पुस्तकों की विज्ञापनबाजी भी कर रहे थे । कुछ प्रकाशक छोटी-छोटी पत्र-पत्रिकाएँ भी बाँट रहे थे । कइयों ने अपने प्रकाशकों के नाम से प्लास्टिक के थैले से बनवा रखे थे। सो वे अपनी प्रचार सामग्री उनमें नख भर कर बाँट रहे थे । एक दो स्टॉल पर विशेष रूप से चर्चित लेखक भी मौजूद थे, जो खरीदार को अपनी पुस्तक पर अपने हस्ताक्षर करके दे रहे थे ।
मैंने यह अनुभव किया कि आम तौर पर पुस्तकें उलट-पुलट कर देखने वालों की संख्या अधिक थी, खरीदने वालों की कम । इसका कारण यह भी हो सकता है कि पुस्तकों पर लिखी कीमतें इतनी अधिक थी कि पढ़ते ही चौक जाते थे । लोग चाह कर भी उतनी कीमत की पुस्तक खरीद पाने में अपने को समर्थ नहीं पा रहे थे । जो भी हो आज हम प्रदर्शनी का हिन्दी विभाग पूरा देखकर ही बाहर आए ।
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