Hindi, asked by dishitapa3502, 1 year ago

Pyas Jaane kab bujhegi ka aashay spasht Karen

Answers

Answered by jayathakur3939
4

" प्यास जाने कब बुझेगी " यह पंक्ति केदारनाथ अग्रवाल  जी की कविता "चाँद गहना से लौटती बेर " से ली गई है |

सामने एक पोखर है जिस में छोटी छोटी लहरें उठ रही हैं। पोखर की तलछटी में जो शैवाल हैं वो भी साथ साथ लहर मार रहे हैं। पोखर के बीच में प्राय: लकड़ी का एक मोटा सा खम्भा होता है। कुछ जगह पर इसे जाट कहा जाता है। इससे पोखर में पानी की गहराई का पता चलता है। इसकी तुलना चांदी के एक बड़े से खम्भे से की गई है जिससे आँखें चौंधिया जाती हैं। किनारे पड़े छोटे छोटे पत्थर इस तरह चुपचाप पानी पी रहे हैं जैसे उनकी प्यास कभी नहीं बुझने वाली हो।

Similar questions