Q 1 कोई भी कर्म करने से पहले मनुष्य को क्या सोचना चाहिए?
Q2 किस त्याग से मनुष्य सच्चा सन्यासी तथा योगी माना जाता है?
Q3 मनुष्य स्वयं अपना बंधु एवं शत्रु कैसे हैं?
Q4 कौन सी स्तिथि योग कहलाती है?
Q5 मन को वश में कैसे किया जा सकता है?
पाठ 6 (आत्म - कल्याण के उपाय)
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- कोई भी शुभ कार्य करने से पहले दही खाकर निकलें और दही खाकर निकलने से आपको कार्य में सफलता मिलती है और आपके कार्यों में कोई रुकावट नहीं आती है।
- सब कुछ दान कर देना ही संन्यासी का कर्तव्य है। तो गृहस्थ और संन्यासी के जीवन के ऐसे ही नियम हैं। आज से यथायथ भाव से अपने आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक कर्तव्य का पालन करते रहो।
- जो मनुष्य अपने उद्धार का उपाय करता है, वही अपना मित्र है, इसके विपरित समझ-बूझकर जो इसके विरूद्ध आचारण करता है, वह अपना शत्रु है। जीवन के सभी क्षेत्रों में माता-पिता, मित्र व गुरू कुछ समय के लिए सहारा दे सकते हैं। किंतु उपर उठने व दुर्गति से बचने का प्रयत्न स्वयं ही करना पड़ता है।
- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं: चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं।
- मन को पवित्र एवं उत्कृष्ट विचारों के चिंतन में लगाए रखें। इसके लिए नेत्रों, कानों और जिह्वा का संयम आवश्यक है। न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न बुरा उच्चारित करें। यदि दूषित दृश्य देखोगे और अश्लील वार्ता सुनोगे, तो मन स्वतः दूषित हो उठेगा।
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