Q.1 सम खाने का क्या आशय है?
Answers
‘सम खाने’ का अर्थ है कि सांसारिक भोगों का उपयोग बुद्धि एवं विवेक के अनुसार करो अर्थात संसार में जो भी सुख और दुख मिले हैं, उनका उपयोग समान रूप से करो। सुखों यानि सांसारिक भोगों का उपयोग करते हुए उनमें ही फँस कर मत रह जाओ और ना ही सांसारिक भोगों से इतना दूर भागो यानि बहुत अधिक त्याग करने की कोशिश भी मत करो। सांसारिक भोगों को उपयोग तो करो लेकिन सोचसमझकर सीमित मात्रा में। ऐसा करने से ईश्वर को पाने की राह आसान बनती है।
स्पष्टीकरण:
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
ना खाकर बनेगा अहंकारी,
सम खा तभी होगा सम्भावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
कवयित्री ललद्यद ने अपनी वाख के माध्यम से ये स्पष्ट करने की कोशिश की है कि मनुष्य को सांसारिक भोगों में रम नही जाना चाहिये यानि सांसारिक भोगों का सोच-समझकर उपयोग करना चाहिये। इसके साथ ही पूर्ण रूप से सब कुछ त्याग करने की प्रवृत्ति भी नही अपनानी चाहिये क्योंकि त्याग करने से मनुष्य में अहंकार का भाव जाता है। यानि मनुष्य को बीच का मार्ग अपनाना चाहिये, ना तो भोगों में अत्याधिक लिप्त होना चाहिये और ना ही अत्याधिक त्याग करने की प्रवृत्ति अपनानी चाहिये। बीच की समान प्रवृत्ति अपनाने से मनुष्य का बुद्धि और विवेक जगा रहता है, ना उसकी बुद्धि अत्याधिक भोगों के उपयोग के कारण कुंद होती है, और ना ही अत्याधिक त्याग करने से उसमें अहंकार की प्रवृत्ति पनपती है। इस तरह मनुष्य ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता आसान बनाता है।
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