Q1. प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ व्याख्या कीजिए
oअपने जमाने को याद कर चौधरी साहब कहते हैं कहते हैं वह भी क्या वक्त थे लोग मिडिल पास कर डिप्टी कलेक्टर करते थे और आज कल की है कि एंट्रेंस तक अंग्रेजी पढ़कर लड़के 30 40 से आगे badh patte
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Answer:
नारायण डिप्टी कलक्टरी के इम्तहान में बैठना चाहता है। फीस भरनी है। लेकिन शकलदीप बाबू गूस्सा करते हैं कि यह लड़का (नारायण) अगर कुछ बनने लायक होता तो अब तक बन गया होता। पर मन ही मन कहीं न कहीं उनके अंदर भी यह उम्मीद थी कि उनका लड़का कलेक्टर बन सकता है।
'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बारे में कहते हैं कि, ''ये भी हमारे परिवार की थी। भाई लॉ करके बलिया आ गये थे। बलिया जैसे छोटे शहर में रहकर उनका बिन सुविधा, अपने बूते आई.ए.एस. में बैठना। सिम्पिली सिटी के मास्टर थे वे। जटिल से जटिल चीजों को सिम्पिलीफाई कर देना ये चीज हमने उनसे सीखी। कुछ विषयों में टॉपर! लिखित में नम्बर अच्छे आते, पर इन्टरव्यू! इंन्टरव्यू का जब कॉल आता था तो जैसे ताजी हवा का आना, स्वप्न, आशा का वह उत्साह, पिता की आशाएँ, प्रतीक्षा.... आप 'डिप्टी कलक्टरी` में देख सकते हैं। उसकी आलोचना में कहा भी गया है - एक आशा भरी प्रतीक्षा।
अत: वे न केवल फीस के पैसे देते हैं बल्कि इस बात का पूरा खयाल भी रखते थे कि उनके बेटे को किसी तरह की कोई परेशानी न हो। नारायण परीक्षा में पास भी हुए, लेकिन इन्टरव्यू अभी बाकी था। परिवार के सभी लोगों की आशाएँ बढ़ गयी हैं। और इसी आशा भरी प्रतीक्षा के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
Explanation:
अमरकांत की बातों से साफ है कि यह कहानी उन्होंने अपने पारिवारिक परिवेश पर ही लिखी है। शकलदीप बाबू और जमुना देवी अपने बड़े लड़के 'नारायण` से काफी उम्मीदे लगाये रहते हैं। नारायण डिप्टी कलक्टरी के इम्तहान में बैठना चाहता है। फीस भरनी है। लेकिन शकलदीप बाबू गूस्सा करते हैं कि यह लड़का (नारायण) अगर कुछ बनने लायक होता तो अब तक बन गया होता। पर मन ही मन कहीं न कहीं उनके अंदर भी यह उम्मीद थी कि उनका लड़का कलेक्टर बन सकता है।