Hindi, asked by BrainlyHelper, 1 year ago

Question 4:
कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
Class 9 NCERT Hindi Kshitij Chapter कैदी और कोकिला

Answers

Answered by nikitasingh79
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कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कैदी और कोकिला’ कविता के माध्यम से कवि ने तत्कालीन ब्रिटिश शासकों द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन करने वाले देशभक्तों पर किए जाने वाले अत्याचारों का वर्णन किया है। कवि ने बताया है कि स्वतंत्रता सेनानी जेल में बंद होने पर भी अपना साहस और हिम्मत नहीं खोते थे तथा महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अहिंसा आंदोलन में अपना पूरा योगदान देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।इस कविता में कवि ने जेल में एकांत और उदास जीवन व्यतीत करते हुए कोयल से अपने हृदय की पीड़ा और असंतोष का भाव व्यक्त किया  था। कवि ने इस कविता में कैदियों को कारागार में दिए जाने वाले तरह-तरह के कष्टों और दुखों की ओर भी संकेत किया है।

उत्तर :-
पराधीन भारत की जेलों में अंग्रेजी शासन में भयंकर यातनाएँ दी जाती थी ताकि देशभक्त उन यातनाओं से भयभीत हो जाए तथा अपने उद्देश्य से पीछे हट जाएं। जेलों में कैदियों की छाती पर बैलों की तरह फीता लगाकर चूना आदि पिसवाया जाता था; पेट से बांधकर हल जुतवाया जाता था; कोल्हु चलवाकर तेल निकलवाया जाता था; और पत्थरों की गिट्टियां तुड़वाई जाती थी ;उन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता था; उनके हंसने रोने पर भी रोक थी। वह अपने हृदय के भावों को प्रकट नहीं कर सकते थे।

आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।
Answered by Anonymous
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माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन 1889 ईसवी में मध्य प्रदेश के बावई नामक गांव में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित नंदलाल चतुर्वेदी था वह एक अध्यापक के प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत ,बांग्ला, गुजराती ,और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया कुछ समय तक इन्होंने अध्यापन कार्य भी किया इसके पश्चात उन्होंने खंडवा से कर्मवीर नामक साप्ताहिक पत्र निकालना शुरू किया 1913 ईस्वी में इन्होंने प्रसिद्ध मासिक पत्रिका प्रभा का संपादक नियुक्त किया गया चतुर्वेदी जी एक भारतीय आत्मा नाम से लेख और कविताएं लिखते रहें उनकी कविताएं देशप्रेमी युवकों को प्रेरित करती थी श्री गणेश शंकर विद्यार्थी ने इन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया फल स्वरुप उन्होंने कई बार जेल भी जाना पड़ा जेल से बाहर निकलने पर उन्हें साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया उनके सम्मान में हरिद्वार में महंत शान्तानंद ने चांदी के रूपये से इनका तुला दान किया इनकी हिंदी सेवाओं के लिए सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी लिट की उपाधि तथा भारत सरकार ने पदम विभूषण की उपाधि से विभूषित किया इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश सरकार ने भी उन्हें पुरस्कृत किया 69 वर्ष की आयु में 30 जनवरी 1968 में क्रांतिकारी पंचतत्व में विलीन हो गया

=> पराधीन भारत की जेलों में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को अनेकों दारुण कष्ट दिए जाते थे उन्हें समय रूप से आवाज नीयत तत्वों के साथ रखा जाता था पेट भर खाना ना देना कठिन सराय से काम खिंचवाना कोलू चलवाना श्रमिक की भांति दिनभर कार्य करना और किसी से मिलने जुलने की इजाजत ना देना आदि अनेक अवर्णनीय कष्ट दिए जाते थे
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