राग-भूपाली के वादी संवादी स्वर क्या हैं ?
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भारतीय शास्त्रीय संगीत या मार्ग, भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है। शास्त्रीय संगीत को ही ‘क्लासिकल म्जूजिक’ भी कहते हैं। शास्त्रीय गायन ध्वनि-प्रधान होता है, शब्द-प्रधान नहीं। इसमें महत्व ध्वनि का होता है (उसके चढ़ाव-उतार का, शब्द और अर्थ का नहीं)। इसको जहाँ शास्त्रीय संगीत-ध्वनि विषयक साधना के अभ्यस्त कान ही समझ सकते हैं, अनभ्यस्त कान भी शब्दों का अर्थ जानने मात्र से देशी गानों या लोकगीत का सुख ले सकते हैं। इससे अनेक लोग स्वाभाविक ही ऊब भी जाते हैं पर इसके ऊबने का कारण उस संगीतज्ञ की कमजोरी नहीं, लोगों में जानकारी की कमी है। .
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यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है।
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स्वर लिपि
स्वर मध्यम, निषाद वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर।
वादी/संवादी गंधार/धैवत
समय रात्रि का प्रथम प्रहर
विश्रांति स्थान सा; रे; ग; प; - प; ग; रे; सा;
मुख्य अंग ग रे ग; प ग; ध प; सा' ध प ग; प ग रे ग; ग रे सा;