Hindi, asked by riteshkumar714256245, 2 months ago

रोगी को पूर्व वित्त तरल आहार कब दिया जाता है और क्यों?​

Answers

Answered by geetapatil21295
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Explanation:

शरीर में पानी की कमी न हो इसलिए हर दो घंटे में लिक्विड डाइट (तरल पदार्थ) देते रहनी चाहिए। तरलपदार्थ लेने से मरीज में पानी की कमी दूर होने के साथ-साथ यूरिन के माध्यम से विषैले तत्व बाहर निकल जातेहैं। कई बार हालत गंभीर होने पर मरीज खाना नहीं खा पाता। ऐसे में उसे तरल पदार्थों के भरोसे ही रहना पड़ता है।

Answered by anubhabkumar2020
4

Answer:

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Explanation:

हेपेटाइटिस की बीमारी में लिवर की कार्यप्रणाली प्रभावित होने के कारण यह अंग अपना काम ठीक तरह से नहीं कर पाता। ऐसे में मरीज को बेहद संतुलित और पाचक आहार की जरूरत होती है जो सुपाच्य होने के साथ उसके शरीर को जरूरी पोषक तत्व भी दे सके। जानते हैं इस रोग में खानपान के सही तरीके व महत्त्व के बारे में।

ये हो सुबह का नाश्ता

इस रोग में मरीज की पाचनशक्तिकमजोर हो जाती है और उसके शरीर में कैलोरी की मांग भी बढ़ जाती है। इसलिए उसे अधिक से अधिक कैलोरीयुक्तआहार देना चाहिए। ऐसे में सूजी की खीर, दूध दलिया, केला, ब्रेड जैम आदि नाश्ते में दे सकते हैं।

ढाई घंटे का अंतराल जरूरी

लिवर में गड़बड़ी के कारण ज्यादातर रोगी चीजों को एक बार में नहीं खा पाते। ऐसे में उनकी डाइट के बीच में करीब ढाई घंटे का अंतर जरूर रखें। नाश्ते के ढाई घंटे बाद उन्हें भोजन में मूंग की दाल या इसी दाल से बनी खिचड़ी और उपमा आदि दे सकते हैं। उनके खाने में चिकनाई व मिर्च-मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

नमक भी बेहद कम होना चाहिए क्योंकि ऐसे भोजन को पचने में काफी मुश्किल होती है। इसके साथ डाइट में जैली, रसगुल्ला, कस्टर्ड जैसी मीठी चीजों को शामिल करें ताकि शरीर में कैलोरी की मांग पूरी होती रहे। रात के भोजन में दोपहर वाले खाद्य पदार्थों के अलावा लौकी, टिंडे व तुरई आदि की बिना मसाले व तेल की सब्जी भी दी जा सकती है।

रोगी को रोटी भी न दें क्योंकि उसे पचाने में भी दिक्कत हो सकती है। तबीयत में सुधार होने पर रात के भोजन में सब्जी या मूंग की दाल के साथ एक पतली रोटी को शामिल किया

जा सकता है।

तरल पदार्थ देते रहें

शरीर में पानी की कमी न हो इसलिए हर दो घंटे में लिक्विड डाइट (तरल पदार्थ) देते रहनी चाहिए। तरल पदार्थ लेने से मरीज में पानी की कमी दूर होने के साथ-साथ यूरिन के माध्यम से विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। कई बार हालत गंभीर होने पर मरीज खाना नहीं खा पाता। ऐसे में उसे तरल पदार्थों के भरोसे ही रहना पड़ता है। इसलिए लिक्विड डाइट के रूप में उसे नारियल पानी, मीठी लस्सी, छाछ व सेब का जूस देना चाहिए। इससे उसके शरीर में तरल पदार्थों की पूर्ति के साथ कैलोरी भी पहुंचती रहती है।

एक माह तक परहेज जरूरी

बीमारी से ठीक होने के बाद लिवर कुछ समय तक के लिए कमजोर रहता है इसलिए व्यक्तिको कम से कम एक माह तक बाहर के खाने से परहेज करना चाहिए। घर का बना खाना ही खाएं व जूस आदि भी घर पर निकाला हुआ ही लें क्योंकि बाहर का भोजन अधिक चिकनाईयुक्त व मसालेदारहोता है और आसानी से पच नहीं पाता।

स्ट्रीट फूड आदि में दूषित पानी व साफ-सफाई का ध्यान न रखे जाने की आशंका रहती है जिससे लिवर में दोबारा संक्रमण होने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा बाजार में बिकने वाला फू्रट चाट या कटे हुए खीरे, ककड़ी सलाद आदि को खाने से बचना ही बेहतर होगा।

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