राजा भोज की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए
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राजा भोज एक कुशल प्रशासाक होने के साथ -साथ शिक्षा भाषा सस्कृति समर्थ सबंहक थे।
इनकी विद्वता के कारण जनमावस मे एक कहावत प्रर्चालत हुई कहा राजा भोज कहा गगूँ तैली
भोज बड़े ही वीर तथा गुणगाही राजा थे
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राजा भोज का जन्म सन 980 मे महाराज विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन मे हुआ।
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राजा भोज की विशेषता :
- राजा भोज एक कुशल प्रशासक होंने के साथ-साथ शिक्षा-भाषा-संस्कृति के समर्थ संवाहक रहे हैं। जहाँ एक ओर हम उन्हें शिव भक्त और सरस्वती के उपासक के रूप में पाते हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी कृतियाँ उनके महान दार्शनिक स्वरूप को प्रभावित करते हैं। राजा भोज ने अनेक, काव्यग्रंथों और व्याकरण ग्रन्थों की रचना कर अपने साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय दिया है।
- राजा भोज स्वयं बहुत विद्वान थे और कहा जाता है कि उन्होंने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवन निर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं, जो अब भी विद्यमान हैं। इनके समय में कवियों को राज्य से आश्रय मिला था। उन्होंने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली।
- भोज बहुत बड़े वींर, प्रतापी और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। इनकी सभा सदा बड़े-बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था, जो बहुत बड़ी विदुषी थी।
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