Hindi, asked by AShiba2597, 1 year ago

राजा भगीरथ की कहानी व जीवनी। Raja Bhagirath ki Kahani

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Answered by Stylishhh
3

Answer:

जब मनुष्य कोई कार्य करने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तब कार्य कितना भी कठिन हो, देखने में कितना भी असम्भव जान पड़ता हो, वह कर ही लेता है। एक-दो नहीं ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं। हमारे देश के इतिहास में ऐसे अनेक महापुरुषों का वर्णन है। उन्हीं में से एक राजा भगीरथ का जीवन-चरित्र यहाँ दिया जा रहा है।

जिस वंश के महाराज रामचन्द्र थे, उसी वंश के, उनके कई पीढ़ी पहले अयोध्या में राजा सगर राज्य करते थे। राजा सगर की दो रानियाँ थीं केशिनी और सुमति। राजा सगर ने यज्ञ आरम्भ किया। प्राचीन काल में यज्ञ के समय एक घोड़ा छोड़ दिया जाता था और वह विजय का चिह्न माना जाता था। राजा सगर के घोड़े को इन्द्र ने पकड़ लिया।

Raja Bhagirath ki Kahani

जब बहुत खोजने पर भी घोड़ा न मिला तब राजा सगर ने अपने पुत्रों से घोड़ा खोजकर लाने के लिए कहा। राजा के पुत्र यज्ञ का घोड़ा ढूँढ़ने के लिए घर से निकले। देश-विदेश उन्होंने खोज डाला, किन्तु घोड़े का कहीं पता न चला, तब उन्होंने पृथ्वी खोदना आरम्भ किया। एक-एक भाई धरती खोद-खोदकर ढूँढ़ने लगा। इस ढुँढ़ाई में अनेक जीव-जन्तुओं की हत्या होने लगी, इससे लोग बहुत दुःखी हुए। लोगों ने सगर के पुत्रों से अनुनय-विनय भी की, परन्तु उन्हें तो पिता के यज्ञ को पूर्ण करना था। उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और धरती खोदते चले गये। अन्त में एक स्थान पर पहुँचे, जहाँ मुनि कपिल बैठे हुए थे और वहीं उनके निकट घोड़ा बँधा हुआ था। राजा के पुत्रों ने समझा कि हमारे पिता के यज्ञ में विघ्न डालने वाला यही है। क्रोध में बोले , ‘‘तू ही हमारे पिता के यज्ञ के घोड़े को चुरा लाया है। देख, सगर के पुत्र तुझे खोजते-खोजते आ गये। मुनि कपिल को बहुत क्रोध आया और उन्होंने इन पुत्रों को वहीं भस्म कर दिया।

राजा सगर ने बड़ी प्रतीक्षा के बाद भी जब देखा कि मेरे पुत्र नहीं लौटे तब उन्होंने अपने दूसरे पुत्र को भेजा। इनका यह पुत्र बहुत परिश्रम से वहाँ पहुँचा। उसे सारी घटना का पता चला। घोड़ा वह ले आया, यज्ञ समाप्त हो गया। भस्म हुए पुरखों को तारने के लिए गंगा की आवश्यकता थी, गंगा को लाए कौन ?

सगर के पश्चात् उनके वंश में अनेक लोगों ने बड़ी तपस्या की, किन्तु कोई गंगा की धारा लाने में समर्थ नही हुआ। अन्त में सगर के प्रपौत्र भगीरथ ने प्रतिज्ञा की, कि मै गंगा की धारा बहाकर लाऊँगा। भगीरथ विख्यात महाराज दिलीप के पुत्र थे। इन्हें अपने पितामहों की कथा सुनकर बड़ा दुःख हुआ। उन्हें इस बात का दुःख था कि मेरे पिता, पितामह यह कार्य न कर सके। उनके कोई सन्तान न थी और वह सारा राजकार्य मन्त्रियों को सौंपकर तप करने चले गये। उन्होंने अपने लाभ के लिए अथवा अपने हित के लिए तप नहीं किया। उनकी एकमात्र अभिलाषा यही थी कि गंगा की धारा लाकर अपने पितामहों की राख अर्पित कर दूँ।

ब्रह्मा वरदान प्राप्ति : भगीरथ गोकर्ण तीर्थ में जाकर घोर तपस्या करने लगे। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वर माँगे—एक तो यह कि गंगा जल चढ़ाकर भस्मीभूत पितरों को स्वर्ग प्राप्त करवा पायें और दूसरा यह कि उनको कुल की सुरक्षा करने वाला पुत्र प्राप्त हो। ब्रह्मा ने उन्हें दोनों वर दिये, साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग इतना अधिक है कि पृथ्वी उसे संभाल नहीं सकती। शंकर भगवान की सहायता लेनी होगी। ब्रह्मा के देवताओं सहित चले जाने के उपरान्त भगीरथ ने पैर के अंगूठों पर खड़े होकर एक वर्ष तक तपस्या की। शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया। गंगा को अपने वेग पर अभिमान था। उन्होंने सोचा था कि उनके वेग से शिव पाताल में पहुँच जायेंगे। शिव ने यह जानकर उन्हें अपनी जटाओं में ऐसे समा लिया कि उन्हें वर्षों तक शिव-जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला।

ऐसा कहा जाता है, कि गंगा को लाने के पश्चात् और अपने पितामहों की धार्मिक क्रिया करने के पश्चात् बहुत दिनों तक महाराजा भगीरथ ने अयोध्या में राज्य किया। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने गंगा की धारा अपने राज्य के हित के लिए बहायी। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में उस घटना का बहुत रमणीक वर्णन किया है। आगे-आगे भगीरथ का रथ चला आ रहा है और पीछे-पीछे गंगा की धारा वेग से बहती चली आ रही है।

गंगा से हमारे प्रान्त को बहुत लाभ होता है। धन-धान्य से हमें कितना लाभ पहुँचता है, उसका वर्णन कहाँ तक किया जाय। इसकी महत्ता से पोथियाँ भरी पड़ी हैं। जिस महापुरुष ने ऐसी सरिता का दान हमें दिया उसके कृतज्ञ हम क्यों न हों ? भगीरथ जी के कार्य का महत्त्व हम इस बात से समझ सकते हैं कि यदि आज गंगा न होती तो हमारी स्थिति क्या होती ?

भगीरथ एक महान राजा ही नहीं थे, महान व्यक्ति भी थे, उन्होंने मानवता के हित के लिए सब कुछ किया। चिरकाल तक मानवता उनकी ऋणी रहेगी।

Hope it Helps !!!!

Answered by Anonymous
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नमस्कार ए शिवा मैंने आपके प्रश्न का उत्तर दिया है अगर आपको यह पसंद आता है तो ब्रेन लिस्ट मार्क कीजिए और थैंक्स दीजिए|

जब मनुष्य कोई कार्य करने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तब कार्य कितना भी कठिन हो, देखने में कितना भी असम्भव जान पड़ता हो, वह कर ही लेता है। एक-दो नहीं ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं। हमारे देश के इतिहास में ऐसे अनेक महापुरुषों का वर्णन है। उन्हीं में से एक राजा भगीरथ का जीवन-चरित्र यहाँ दिया जा रहा है।

जिस वंश के महाराज रामचन्द्र थे, उसी वंश के, उनके कई पीढ़ी पहले अयोध्या में राजा सगर राज्य करते थे। राजा सगर की दो रानियाँ थीं केशिनी और सुमति। राजा सगर ने यज्ञ आरम्भ किया। प्राचीन काल में यज्ञ के समय एक घोड़ा छोड़ दिया जाता था और वह विजय का चिह्न माना जाता था। राजा सगर के घोड़े को इन्द्र ने पकड़ लिया।

Raja Bhagirath ki Kahani

जब बहुत खोजने पर भी घोड़ा न मिला तब राजा सगर ने अपने पुत्रों से घोड़ा खोजकर लाने के लिए कहा। राजा के पुत्र यज्ञ का घोड़ा ढूँढ़ने के लिए घर से निकले। देश-विदेश उन्होंने खोज डाला, किन्तु घोड़े का कहीं पता न चला, तब उन्होंने पृथ्वी खोदना आरम्भ किया। एक-एक भाई धरती खोद-खोदकर ढूँढ़ने लगा। इस ढुँढ़ाई में अनेक जीव-जन्तुओं की हत्या होने लगी, इससे लोग बहुत दुःखी हुए। लोगों ने सगर के पुत्रों से अनुनय-विनय भी की, परन्तु उन्हें तो पिता के यज्ञ को पूर्ण करना था। उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और धरती खोदते चले गये। अन्त में एक स्थान पर पहुँचे, जहाँ मुनि कपिल बैठे हुए थे और वहीं उनके निकट घोड़ा बँधा हुआ था। राजा के पुत्रों ने समझा कि हमारे पिता के यज्ञ में विघ्न डालने वाला यही है। क्रोध में बोले , ‘‘तू ही हमारे पिता के यज्ञ के घोड़े को चुरा लाया है। देख, सगर के पुत्र तुझे खोजते-खोजते आ गये। मुनि कपिल को बहुत क्रोध आया और उन्होंने इन पुत्रों को वहीं भस्म कर दिया।

राजा सगर ने बड़ी प्रतीक्षा के बाद भी जब देखा कि मेरे पुत्र नहीं लौटे तब उन्होंने अपने दूसरे पुत्र को भेजा। इनका यह पुत्र बहुत परिश्रम से वहाँ पहुँचा। उसे सारी घटना का पता चला। घोड़ा वह ले आया, यज्ञ समाप्त हो गया। भस्म हुए पुरखों को तारने के लिए गंगा की आवश्यकता थी, गंगा को लाए कौन ?

सगर के पश्चात् उनके वंश में अनेक लोगों ने बड़ी तपस्या की, किन्तु कोई गंगा की धारा लाने में समर्थ नही हुआ। अन्त में सगर के प्रपौत्र भगीरथ ने प्रतिज्ञा की, कि मै गंगा की धारा बहाकर लाऊँगा। भगीरथ विख्यात महाराज दिलीप के पुत्र थे। इन्हें अपने पितामहों की कथा सुनकर बड़ा दुःख हुआ। उन्हें इस बात का दुःख था कि मेरे पिता, पितामह यह कार्य न कर सके। उनके कोई सन्तान न थी और वह सारा राजकार्य मन्त्रियों को सौंपकर तप करने चले गये। उन्होंने अपने लाभ के लिए अथवा अपने हित के लिए तप नहीं किया। उनकी एकमात्र अभिलाषा यही थी कि गंगा की धारा लाकर अपने पितामहों की राख अर्पित कर दूँ।

ब्रह्मा वरदान प्राप्ति : भगीरथ गोकर्ण तीर्थ में जाकर घोर तपस्या करने लगे। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वर माँगे—एक तो यह कि गंगा जल चढ़ाकर भस्मीभूत पितरों को स्वर्ग प्राप्त करवा पायें और दूसरा यह कि उनको कुल की सुरक्षा करने वाला पुत्र प्राप्त हो। ब्रह्मा ने उन्हें दोनों वर दिये, साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग इतना अधिक है कि पृथ्वी उसे संभाल नहीं सकती। शंकर भगवान की सहायता लेनी होगी। ब्रह्मा के देवताओं सहित चले जाने के उपरान्त भगीरथ ने पैर के अंगूठों पर खड़े होकर एक वर्ष तक तपस्या की। शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया। गंगा को अपने वेग पर अभिमान था। उन्होंने सोचा था कि उनके वेग से शिव पाताल में पहुँच जायेंगे। शिव ने यह जानकर उन्हें अपनी जटाओं में ऐसे समा लिया कि उन्हें वर्षों तक शिव-जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला।

ऐसा कहा जाता है, कि गंगा को लाने के पश्चात् और अपने पितामहों की धार्मिक क्रिया करने के पश्चात् बहुत दिनों तक महाराजा भगीरथ ने अयोध्या में राज्य किया। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने गंगा की धारा अपने राज्य के हित के लिए बहायी। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में उस घटना का बहुत रमणीक वर्णन किया है। आगे-आगे भगीरथ का रथ चला आ रहा है और पीछे-पीछे गंगा की धारा वेग से बहती चली आ रही है।

गंगा से हमारे प्रान्त को बहुत लाभ होता है। धन-धान्य से हमें कितना लाभ पहुँचता है, उसका वर्णन कहाँ तक किया जाय। इसकी महत्ता से पोथियाँ भरी पड़ी हैं। जिस महापुरुष ने ऐसी सरिता का दान हमें दिया उसके कृतज्ञ हम क्यों न हों ? भगीरथ जी के कार्य का महत्त्व हम इस बात से समझ सकते हैं कि यदि आज गंगा न होती तो हमारी स्थिति क्या होती ?

भगीरथ एक महान राजा ही नहीं थे, महान व्यक्ति भी थे, उन्होंने मानवता के हित के लिए सब कुछ किया। चिरकाल तक मानवता उनकी ऋणी रहेगी।

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