राज्य आयोग के पास किस प्रकार के मामलों का दावा किया जा सकता है?
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भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत सरकार ने अंग्रेजी राज के दिनों के 'राज्यों' को भाषायी आधार पर पुनर्गठित करने के लिये राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की। 1950 के दशक में बने पहले राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश में राज्यों के बंटवारे का आधार भाषाई था। इसके पीछे तर्क दिया गया कि स्वतंत्रता आंदोलन में यह बात उठी थी कि जनतंत्र में प्रशासन को आम लोगों की भाषा में काम करना चाहिए, ताकि प्रशासन लोगों के नजदीक आ सके।
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"जिस स्थिति में कोई भी दावा क्षतिपूर्ति राशि को सम्मिलित करने के बाद १ करोड़ रूपए से अधिक का हो जाता है तो राज्य आयोग को सौंपा जाता है। इसकी सभी कार्यवाही राष्ट्रीय स्तर पर होती है और इसमें उपलब्ध राहत निम्नलिखित हैं:
• दोष या कमी को हटाना
• दोषपूर्ण वस्तुओं को बदलकर नई दोषमुक्त वस्तुएँ देना
• सेवा या वस्तु के लिए ग्राहक द्वारा किए गए भुगतान को वापस दिलाना
• उपभोक्ता हानी का उचित भुगतान करना
• दंडस्वरूप क्षति का ठीक–ठीक भुगतान
• प्रतिबंधित या अनुचित व्यापारिक क्रियाओं पर रोक लगाना
• हानिकारक वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगाना"
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