राज्यों की स्वायत्तता के प्रति aaदर का
भाव बढ़ा है। इस आप जरबरी कभी मानते हैं?
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nahi ham nahin mante hain
Answer:
हाँ
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने वित्त आयोग से गुजारिश की थी कि केंद्र सरकार द्वारा वसूल किए जा रहे टैक्स में राज्यों के हिस्से में वृद्धि की जाए तथा अनुदान के साथ लगी तमाम शतरें को समाप्त किया जाए। ज्ञात हो कि हमारे संविधान के अनुसार ग्रामीण सड़क, बिजली, पानी, पुलिस, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। इन विस्तृत जिम्मेदारियों के सामने राज्यों के आय के साधन सेल्स टैक्स एवं प्रापर्टी टैक्स तक सीमित हैं। केंद्र तथा राच्य सरकारों के सम्मिलित खर्च में राच्यों का हिस्सा 55 प्रतिशत है, जबकि सम्मिलित राजस्व में हिस्सा मात्र 37 प्रतिशत है। राच्यों के खर्च च्यादा और आय कम है। इस खाई को पाटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा वसूल किए जा रहे इनकम टैक्स, कस्टम ड्यूटी तथा एक्साइज ड्यूटी का एक हिस्सा राच्यों को बिना रोक-टोक दे दिया जाता है। इस ट्रांसफर की मात्रा वित्ता आयोग द्वारा निर्धारित की जाती है। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार द्वारा अनुदान दिए जाते हैं जैसे मनरेगा के लिए। अनुदान के साथ तमाम शतर्ें लगा दी जाती हैं। मनरेगा के साथ शर्त लगी रहती है कि अमुक मात्रा का खर्च श्रम पर किया जाएगा। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी चाहते थे कि राच्य अपनी जरूरतों के अनुसार खर्च कर सकें। यदि गुजरात चाहता हो कि मनरेगा की रकम का उपयोग वह सरकारी कामकाज के आटोमेशन में लगाए तो उसे ऐसा करने की छूट होनी चाहिए।
लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उनका यह स्वर बदल गया है। हाल में उन्होंने वित्ता आयोग के सामने दलील दी है कि राच्यों के हिस्से को वर्तमान 32 प्रतिशत पर ही रखा जाए। इसमें वृद्धि नहीं की जाए, क्योंकि केंद्र सरकार के समक्ष रक्षा आदि खचरें की बढ़ती जिम्मेदारी है। विचारणीय है कि केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी उस समय भी थी जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मुद्दा राच्यों की कार्य कुशलता बनाम स्वायत्ताता का है। राच्यों को बिना शर्त अधिक रकम ट्रांसफर करने से उनकी स्वायत्ताता बढ़ती है। तब राच्यों के द्वारा नए प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे मध्याह्न भोजन का प्रयोग सर्वप्रथम तमिलनाडु में किया गया। आज इन प्रयोगों को पूरे देश में लागू किया जा रहा है। यदि राच्यों को छूट न होती तो ये प्रयोग न होते और इनका लाभ पूरे देश को न मिलता। स्वायत्ताता का दूसरा लाभ देश की एकता बनाए रखने का है। राच्यों को अपनी चाल में चलने का अवसर दिया जाए तो देश के प्रति विद्रोह उत्पन्न नहीं होता है। जैसे तमिलनाडु पर हिंदी थोपने का केंद्र सरकार ने प्रयास किया तो वहां अलगाववाद पनपने लगा।
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