Hindi, asked by sharmamanju51290, 1 year ago

राजभाषा पर टीप्पणी लिखे​

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Answered by nandlalbhagat0201198
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Answer:

राजभाषा, किसी राज्य या देश की घोषित भाषा होती है जो कि सभी राजकीय प्रयोजनों में प्रयोग होती है। उदाहरणतः भारत की राजभाषा हिन्दी है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है।

Answered by yogender78
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Answer:

किसी भी प्रजातांत्रिक देश में राजकाज की भाषा उसकी जनता की भाषा होती है। इस विशाल भारत में 1652 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से 15 भाषाओं को संविधान में राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दी गई है। संघ सरकार के राजकाज के कार्य तथा केंद्र एवं राज्यों के बीच संपर्क भाषा की भूमिका निभाने का उत्तरदायित्व हिन्दी को ही सौंपा गया, क्योंकि इसे भारत देश के अधिकांश लोग बोलते और समझते हैं तथा यह भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराओं से जुड़ी हुई है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार देवनागरी में लिखित हिन्दी संघ की राजभाषा है, लेकिन 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात् सन 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिन्दी न जानने वाले हिन्दी सीख जायेंगे और हिन्दी भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा। उपर्युक्त 15 वर्षों की अवधि में भी, अर्थात् 1965 के पहले भी राष्ट्रपति आदेश द्वारा किसी काम के लिए अंग्रेज़ी के अलावा हिन्दी के प्रयोग की अनुमति दे सकते थे। अनुच्छेद 334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान प्रारंभ होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जो अन्य बातों के साथ साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई।

1950 में हिन्दी को संघ की राजभाषा घोषित किए जाने पर यह अनुभव किया गया कि हिन्दी के माध्यम से प्रकाशन का कार्य चलाने के लिए कुछ प्रारंभिक तैयारियों की आवश्यकता पड़ेगी, जैसे- प्रशासनिक, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं विधि-शब्दावली का निर्माण, प्रशासनिक एवं विधि-साहित्य का हिन्दी में अनुवाद, अहिन्दी भाषी सरकारी कर्मचारियों का हिन्दी प्रशिक्षण और हिन्दी टाइपराइटरों एवं अन्य साधनों की व्यवस्था आदि।

 

शब्दावली निर्माण  

शब्दावली निर्माण के लिए शिक्षा मंत्रालय ने 1950 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी बोर्ड की स्थापना की। इसके मार्गदर्शन में शिक्षा मंत्रालय के हिन्दी विभाग ने तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्य चालू किया। बाद में हिन्दी विभाग का विस्तार होते होते सन 1960 में केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना हुई। इसके कुछ समय बाद 1961 में राष्ट्रपति के आदेशानुसार वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की भी स्थापना की गई। निदेशालय तथा आयोग ने अब तक विज्ञान, मानविकी, आयुर्विज्ञान, इंजीनियरी, कृषि तथा प्रशासन आदि के लगभग 4 लाख अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्दों के हिन्दी पर्याय प्रकाशित कर दिए हैं। इसी प्रकार राजभाषा (विधायी आयोग) तथा राजभाषा खंड ने विधि शब्दावली का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया है।

 

प्रशासनिक साहित्य का अनुवाद  

केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के मैनुअलों, संहिताओं, फार्मों आदि का अनुवाद कार्य पहले शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा किया जाता था। बाद में मार्च, 1971 में यह कार्य गृह मंत्रालय के अधीन स्थापित केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को सौंपा गया। ब्यूरो ने निदेशालय द्वारा अनूदित साहित्य के अतिरिक्त अब तक अनेक मैनुअलों/फार्मों/निपोर्टों आदि का अनुवाद करके विभिन्न मंत्रालयों को उपलब्ध करा दिया है। इस समय ब्यूरो मंत्रालयों/विभागों के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्यालयों/उपक्रमों आदि के मैनुअलों का भी अनुवाद कर रहा है। उसी प्रकार विधि मंत्रालय के राजभाषा खंड ने भी अब तक अधिकांश केंद्रीय अधिनियमों एवं नियमों आदि का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर दिया है और यह कार्य निरंतर चल रहा है।

 

हिन्दी शिक्षण योजना  

केंद्रीय सरकार के हिन्दी न जानने वाले सरकारी कर्मचारियों के हिन्दी शिक्षण का कार्य शिक्षा मंत्रालय की देखरेख में 1952 में प्रारंभ हुआ था, किंतु बाद में लिए गए निर्णय के अनुसार अक्टूबर, 1955 से यह कार्य गृह मंत्रालय के तत्वावधान में हो रहा है। प्रारंभ में यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उन लोगों के लिए था, जो स्वेच्छा से हिन्दी पढ़ना चाहते थे। बाद में अप्रैल, 1960 में राष्ट्रपति के आदेश के अधीन हिन्दी का सेवा कालीन प्रशिक्षण उन सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया जो 1.1.1961 को 45 वर्ष के नहीं हुए थे। इसी प्रकार टंककों और आशुलिपिकों के लिए भी टाइपिंग और हिन्दी आशुलिपि का प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया गया। इस समय देश भर में हिन्दी, हिन्दी टाइपिंग तथा हिन्दी आशुलिपि प्रशिक्षण के लगभग 150 केंद्र चल रहे हैं।

उपर्युक्त प्रयत्नों के परिणामस्वरूप हिन्दी के विकास एवं प्रसार में अच्छी प्रगति हुई है, किंतु जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इस प्रगति का जायजा लेने के लिए संविधान की धारा 344 के अनुसार 1955 में एक राजभाषा आयोग बनाया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट 1956 में प्रस्तुत की। उसकी सिफारिशों पर विचार करने के लिए 1957 में एक संसदीय समिति बनाई गई थी। इन दोनों की राय यह थी कि 1965 के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग चलते रहना चाहिए, तदनुसार 1963 में राजभाषा अधिनियम बनाया गया, जिसका 1967 में संशोधन किया गया। इसकी प्रमुख विशेषताएँ नीचे दी जा रही हैं-

राजभाषा के संबंध में सांवैधानिक व्यवस्थाएँ

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