राजस्थान में कुंई क्यों बनाई जाती हैं? कुंई से जल लेने की प्रक्रिया बताइए।?
Answers
➲ कुईं का संबंध राजस्थान से है। यह कुएं का छोटा रूप है। कुईं का व्यास कुएं के व्यास से कम होता है, लेकिन गहराई कुएं के समान ही होती है। कुईं का व्यास छोटा इसलिये रखा जाता है, ताकि कम मात्रा का पानी ज्यादा फैल नहीं और ऊपर आसानी से निकल जाए। राजस्थान में कुईं का प्रचलन बहुत अधिक रहा है।
कुईं राजस्थान जैसे कुछ क्षेत्रों में ही प्रचलित है जहाँ पानी की कमी होती है। भूजल का स्तर भी बेहद कम होता है। राजस्थान में कुईं का प्रचलन बहुत अधिक रहा है।
व्याख्या ⦂
✎... कुईं खोदने की प्रक्रिया एक कठिन प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में एक छोटे से व्यास में तीस से साठ हाथ तक खुदाई की जाती है और खुदाई के साथ-साथ तुरंत ही चिनाई करनी पड़ती है। खुदाई के समय जमीन में नमी और हवा अभाव होता है। जिस कारण दम घुटने जैसा वातावरण बन जाता है। चिनाई के लिए जिन ईंट-पत्थरों की आवश्यकता होती है, वह रस्सी के साथ पीछे गिराए जाते हैं। इससे सिर को चोट ना लगे इससे बचने के लिए सिर पर पीतल या तांबे का टोप पहना जाता है। यह सारी प्रक्रियाएं कठिन हैं और कोई विशेष रूप से विशिष्ट रूप से दक्ष व्यक्ति ही यह कठिन कार्य कर पाता है। इसीलिए कुईं खोदने वाले ऐसे व्यक्तियों को चेलबांजी या चेजारो कहते हैं।
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Answer:
राजस्थान में थार का रेगिस्तान है जहाँ जल का अभाव है। नदी-नहर आदि तो स्वप्न की बात है। तालाबों और बावड़ियों के जल से नहाना, धोना और पशुधन की रक्षा करने का काम किया जाता है। कुएँ बनाए भी जाते हैं तो एक तो उनका जल स्तर बहुत नीचे होता है और दूसरा उनसे प्राप्त जल खारा (नमकीन) होता है। अतः पेय जल आपूर्ति और भोजन बनाने के लिए कुंई के पानी का प्रयोग किया जाता है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए राजस्थान में कुंई बनाई जाती जब कुंई तैयार हो जाती है तो रेत में से रिस-रिसकर जल की बूंदें कुंई में टपकने लगती हैं और कुंई में जल इकट्ठा होने लगता है। इस जल को निकालने के लिए गुलेल की आकृति की लकड़ी लगाई जाती है। उसके बीच में फेरडी या घिरणी लगाकर रस्सी से चमड़े की थैली बाँधकर जल निकाला जाता है। आजकल ट्रक के टॉयर की भी चड़सी बना ली। जाती है। जल निकालने का काम केवल दिन में एक बार सुबह-सुबह किया जाता है। उसके बाद कुंई को ढक दिया जाता।
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