रीढ़ की हड्डी प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से लेखक हमारे समाज में किस प्रकार के परिवर्तन की आशा हम सब से रखते हैं लगभग 200 शब्दों में अपने विचार लिखें|
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1.)रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है ।इसका शीर्षक बिल्कुल उचित है। इस एकांकी में लेखक ने समाज के रूढ़ियों पर प्रहार किया है। गोपाल प्रसाद अपने बेटे शंकर के लिए कम पढ़ी लिखी किंतु बहुत सुंदर बहु चाहते हैं वह यह भी चाहते हैं कि लड़की हर काम में सर्वगुण संपन्न हो। उसे गाना बजाना, सिलाई - कढ़ाई, बुनाई और अन्य सभी काम आते हो। उमा से तरह तरह के प्रश्न पूछते हैं । उनमें लड़के का पिता होने की ऐठं है। वह चाहते हैं कि लड़की सर्वगुण संपन्न हो किंतु एकांकी के आखिर में पता चलता है कि उनका अपना बेटा शंकर तो किसी प्रकार भी पूर्ण नहीं है उसमें बहुत सारी कमियां एवं बुराइयां हैं। वह चरित्रहीन तो है ही साथ ही शारीरिक दृष्टि से अपंग भी है तथा पूरी तरह से अपने पिता पर निर्भर है। वह ठीक प्रकार से खड़ा नहीं हो पाता क्योंकि उसकी रीढ़ की हड्डी ही नहीं है। इस प्रकार इस एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ सर्वथा उचित है।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।
2.)यह शीर्षक एकांकी की भावना को व्यक्त करने के लिए बिल्कुल सही है। इस शीर्षक में समाज की सड़ी-गली मानसिकता को व्यक्त किया गया है। क्योंकि रीढ़ शरीर का मुख्य हिस्सा होता है, वही उसको सीधा रखने में मदद करता है। समाज में आए ये विकार उस लचीलेपन पर प्रहार करते हैं और हमारा समाज इन मानसिकताओं का गुलाम बनकर बिना रीढ़ वाला शरीर हो जाता है।
दूसरी तरफ़ यहाँ शंकर जैसे लड़कों से भी यही तात्पर्य है बिना रीढ़ का, इनका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं होता। न ही इनका कोई चरित्र होता है। ये सारी उम्र दूसरों के इशारों पर ही चलते हैं। ये लोग समाज के ऊपर सिवाए बोझ के कुछ नहीं होते। इसलिए उमा ने इसे बिना रीढ़ की हड्डी वाला कहा है।
आशा है कि यह उत्तर आप को अच्छा लगे।
धन्यवाद।।
Explanation:
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Answer: यह समय की माँग होती है। जब यह रीतियाँ या परंपराएँ मनुष्य के हित के स्थान पर उसका अहित करने लगे, तो वे विकार बन जाती हैं। यह एंकाकी समाज में व्याप्त इन विकारों पर कटाक्ष करता है। । इस प्रकार के लड़कों का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं होता और न ही इनका कोई चरित्र होता है। ये सारी उम्र दूसरों के इशारों पर ही चलते हैं। ये लोग समाज के ऊपर सिवाए बोझ के कुछ नहीं होते। इसलिए उमा ने इसे बिना रीढ़ की हड्डी वाला कहा है।वह चाहते हैं कि लड़की सर्वगुण संपन्न हो किंतु एकांकी के आखिर में पता चलता है कि उनका अपना बेटा शंकर तो किसी प्रकार भी पूर्ण नहीं है उसमें बहुत सारी कमियां एवं बुराइयां हैं। वह चरित्रहीन तो है ही साथ ही शारीरिक दृष्टि से अपंग भी है तथा पूरी तरह से अपने पिता पर निर्भर है। वह ठीक प्रकार से खड़ा नहीं हो पाता क्योंकि उसकी रीढ़ की हड्डी ही नहीं है। इस प्रकार इस एकांकी का शीर्षक 'रीढ़ की हड्डी' सर्वथा उचित है। क्योंकि रीढ़ शरीर का मुख्य हिस्सा होता है, वही उसको सीधा रखने में मदद करता है। समाज में आए ये विकार उस लचीलेपन पर प्रहार करते हैं और हमारा समाज इन मानसिकताओं का गुलाम बनकर बिना रीढ़ वाला शरीर हो जाता है। न ही इनका कोई चरित्र होता है। ये सारी उम्र दूसरों के इशारों पर ही चलते हैं। ये लोग समाज के ऊपर सिवाए बोझ के कुछ नहीं होते। इसलिए उमा ने इसे बिना रीढ़ की हड्डी वाला कहा है।
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