रज़ कण पर जल कण होकर बरसने का भाव है कि
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यहाँ महादेवी ने मानवीय भावनाओं के साथ इसे जोड़ा है । वह कहती हैं कि जैसे मनुष्य की चिंता भृकुटि के ऊपर रहती है और जब बरस जाती है तब मन हल्का हो जाता है । पर विश्व कल्याण की भावना के साथ महादेवी जी कहती हैं कि जब वह बादल रज-कण के ऊपर जल कण होकर बरस पडती है तब मिट्टी से नवजीवन अंकुर बन कर निकलती है ।
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