रामा काभय गृहकायाथं पठनाथे च पेरिता
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वामी्वामी तुलसीदास विरचित विरचित्रीरामचरितमानस ड्ड राम जन्म भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्कौसल हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी हारी अद बिचारी बिचारी लोचन अभिरामा तनु घनस यामा निज आयुध चारी. भूषन वनमाला नयन बिसाला बिसाला्सोभासिन खरारी कह दुइ कर जोरी तुति तुति तोरी केहि केहि अनंता अनंता. माया गुअन ग्यानातीत वेद वेद पुरान भनंता॥ करुना सुख सागर सब आगर जेहि जेहि गावहिं गावहिं संता. सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ भयउ रकट्रकट रीकंता्रीकंता॥ रह्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम्रोम बेद्कहै कहै। उर सो बासी उपहासी सुनत सुनत धीर मति थिर रहै रहै॥ उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बहुत बिधि्बिधि चहै। कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प प रकार सुत लहै पुनि बोली सो मति तजहु तजहु तात यह रूपा. कीजे सिसुलीला अति अति्रियसीला यह सुख सुख अनूपा बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा.