राम के वन- गमन का
सध्देय में वर्णन कीजिए।
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पिपरी स्थित खेल मैदान में चल रही रामकथा के सातवें दिन सोमवार को लक्ष्मण परशुराम संवाद व श्रीराम वनगमन का भाव पूर्ण चित्रण कथावाचक दिलीप कृष्ण भारद्वाज ने किया। उन्होंने कहा कि राम वन गमन के दृश्य को देखकर सभी अयोध्यावासी भावविह्वल हो गए। जिस समय राम लक्ष्मण व सीता तपस्वी का वेश धारण करके महारानी कैकेई के कक्ष में जाते हैं, तो वहां महाराज दशरथ को मुर्छित हुए देखकर वे माता कैकेई से महाराज के मूर्छित होने का कारण पूछते हैं। महारानी कैकेयी बताती है कि हे राम पहले महाराजा दशरथ द्वारा उनके दिये गए वरदान को मैंने मांगा, पहला वरदान यह कि अयोध्या का राज भरत को और दूसरे वरदान में तुम्हें तपस्वी के वेश में वनवास का वर मांगा। यही कारण है कि महाराज दशरथ इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सके और मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े। इतना सुनने के बाद राम पिता के पास गए और उन्हें जगाया और कहा कि पिता जी आपके आदेशानुसार मैं आपके पास आया हूं। प्रभु राम ने पिता से कहा मुझे क्या आज्ञा है। इतना सुनते ही महाराज पुन: मूर्छित हो गए। अब वहां से श्रीराम माता कौशल्या के कक्ष में जाकर उनसे भी वन जाने के लिए विदा मांगाए फिर वनगमन का समाचार सुनकर लक्ष्मण और सीता भी तपस्वी के वेश में पुन: महाराज के पास गए और तीनों लोग अपने पिता को प्रणाम करके वन के लिए प्रस्थान करते हैं। इसके बाद गुरू वशिष्ठ के आश्रम में जाकर उनसे वन जाने की आज्ञा लेकर वहां से रथ पर बैठकर वन जाने लगे।जब अयोध्यावासियों ने राम वनगमन का समाचार सुना तो पूरे अयोध्या में मायूसी छा गई और पूरे अयोध्यावासी राजमहल की ओर दौड़ पडे़ कि रास्ते में श्रीराम लक्ष्मण सीता का रथ आते देखकर सभी नर नारी रथ के सामने खडे़ होकर आंखों में आंसू लिए अपने प्रिय राजा से वन न जाने के लिए आग्रह करने लगे। राम ने सबको समझाबुझा कर शांत किया और सारथी से रथ हांकने का आदेश दिया। थोड़े समय बाद श्रीराम अपने भ्राता लक्ष्मण और भार्या सीता के साथ तमसा नदी के तट पर पहुंचकर सभी अयोध्यावासियो