राम कहौ न अजहू केते दिना, जब है है प्रॉन तुम्ह लीनाँ।
भी भ्रमत अनेक जन्म गया, तुम्ह दरसन गोव्यंद छिन न भयो ।
भ्रम्य भूति परयो भव सागर, कछु न बसाइ बसोधरा।।
कहै कबीर दुखभंजना, करौ दया दुरत निकंदना ॥
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