राम लखन सीए रूप निहारी काहीही सप्रेम नगर नर नारी ते पितु मातु कहु सखी कैसे जय पटेलन बालक ऐसे एक कहीं ही भल भूपति किन्हा लोचन अल्लाहू हम ही विधि दिन हां तब निषाद पति और अनुमाना तारों ने रूपा मनोहर जाना प्रसंग व्याख्या
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Sorry I don't know if u know so tell me
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ऐसे एक कहीं ही भल भूपति किन्हा लोचन अल्लाहू हम ही विधि दिन हां तब निषाद पति और अनुमाना तारों ने रूपा मनोहर जाना प्रसंग व्याख्या
Explanation:
राम लखन सिय रूप निहारी। कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी।।
ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे।।
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा।।
तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना।।
लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँति सुहावा।।
पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए।।
गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई।।
सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी।।
व्याख्या:- प्रभु श्री राम सीता जी और लक्ष्मण जी का रूप देख कर श्रृंगवेरपुर के लोग एक दूसरे से बातें करने लगे. एक स्त्री ने अपनी सखी से कहा कि वो माता पिता कैसे होंगे जिन्होंने ऐसे रूपवान, सुकोमल
बच्चों को वन में भेज दिया? किसी ने कहा कि रजा ने अच्छा ही किया, क्योंकि इस प्रकार ब्रह्मा जी ने हमें नयन लाभ प्रदान किया है. इधर निषादराज ने अनुमान किया कि अब राम जी विश्राम करना चाहते
हैं. तब उसने एक बहुत सुन्दर अशोक का वृक्ष उन्हें दिखाया. प्रभु श्री राम को सब प्रकार से सुहाना लगा. सब लोगों ने प्रभु श्री सीता राम लखन जी की पूजा की और अपने अपने घर को लौटे. तब प्रभु श्री
राम संध्या वंदन करने के लिए गंगा तट पर गए. उस समय गुह ने उस अशोक वृक्ष के नीचे प्रभु के लिए कोमल पत्तों की चादर बनाकर डाली. उनके लिए पवित्र और मधुर फल फूल आदि रखे और साथ ही दोने
भर भर कर पानी के रखे. प्रभु श्री राम ने सीता जी, लक्ष्मण जी और सुमंत्र सहित कंद मूल फल खाये. और प्रभु श्री राम सोने की इच्छा की और लक्ष्मण जी उनके पाँव दबाने लगे. प्रभु का भक्त ये जान लेता है कि प्रभु को कब क्या चाहिय, जैसे निषादराज ने जान लिया और जैसे लक्ष्मण जी ने जान लिया. और वो तुरंत प्रभु की सेवा करने लगता है. यही उत्तम भक्ति का परिचय है.
इसके लिए हृदय में प्रभु के लिए अथाह प्रेम होना ही एक मात्र आवश्यक अंग है. आगे कथा जारी रहेगी.........
#SPJ3