राम और भरत के भ्रातृत्व प्रेम के आलोक में वर्तमान भारतीय परिवारों की विसंगतियों पर परस्पर चर्चा कीजिए
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संवाद सूत्र, मेहरमा(गोड्डा) : भरत के दिल में राम और सीता बसते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में भ्रातृत्व प्रेम का जिस अंदाज से स्थापित किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। इस युग में मंथरा बनना तो आसान है लेकिन भरत बनाना अति कठिन हो गया है।
उक्त पंक्ति प्रवचनकर्ता संत शंभू शरण महराजजी ने भागवत कथा के पांचवे दिन कसबा शिवमंदिर प्रागंण में प्रवचन के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि माता की आज्ञा से प्रभु श्रीरामचन्द्र वनवास गए तो भरत को राजपाट संभालने को कहा गया। यह जानने के पश्चात भरत ने अपने बड़े भाई भगवान राम को वनवास से वापस लाने के संकेत दिए। उसी वक्त देवताओं को यह चिंता सताने लगी थी कि प्रभु राम अपने छोटे भाई के आग्रह पर कहीं अयोध्या वापस नहीं लौट आएं। इस बात के संकेतों पर देवताओं ने माता सरस्वती से आग्रह किया था। जहां सरस्वती ने कहा कि भरत के हृदय में राम जी विराजमान हैं यह कार्य मेरे लिए कठिन है। इस कार्य को केवल एक मात्र श्रीराम ही कर सकते है। अर्थात भगवान राम की लीला का अनुकरण कर मनुष्य अपने जीवन को आदर्श बना सकता है। उन्होंने कहा कि भगवान राम ने पिता की आज्ञा शीरोधार्य कर राज सुख त्यागे और वन को प्रस्थान कर गए। भगवान श्रीराम ने माता-पिता की आज्ञा मानकर जन मानस में माता-पिता के प्रति समर्पण की सीख दी।