रामायण से पांच दोहे तथा तीन चोपाइया
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दोहे-
हनुमान तेहि परसा ,कर पुनि कीन्ह प्रणाम
राम काज कीन्हे बिना, मोहि कहाँ बिश्राम
सात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला इक अंग
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लभ सतसंग
रामायुध अंकित गृह, सोभा बरनि न जाई
नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरस कपिराई
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम
जहँ-तहँ गयीं सकल सब सीता कर मन सोच
मास दिवस बीते मोहि, मारिहि निसिचर पोच
चौपाइयां -
धीरज, धरम, मित्र अरु नारी
आपात काल परखियेहू चारी
दीन दयाल बिरिदु सम्भारी
हरहु नाथ मम संकट भारी
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी
हनुमान तेहि परसा ,कर पुनि कीन्ह प्रणाम
राम काज कीन्हे बिना, मोहि कहाँ बिश्राम
सात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला इक अंग
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लभ सतसंग
रामायुध अंकित गृह, सोभा बरनि न जाई
नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरस कपिराई
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम
जहँ-तहँ गयीं सकल सब सीता कर मन सोच
मास दिवस बीते मोहि, मारिहि निसिचर पोच
चौपाइयां -
धीरज, धरम, मित्र अरु नारी
आपात काल परखियेहू चारी
दीन दयाल बिरिदु सम्भारी
हरहु नाथ मम संकट भारी
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी
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