() रे मन आज परीक्षा तेरी।
विनती करती हूँ मैं तुम्हसे बात न बिगड़े मेरी।
यदि वे चल आये हैं इतना तो दो पद उनको है कितना?
क्या भारी वह मुझको जितना? पीठ उन्होंने फेरी।।
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इन पंक्तियों में शृंगार रस का वर्णन किया है|
इसमें मन की परीक्षा की बात हो रही है। नायिका अपने मन को समझा रही है, प्रिय के न होने के कारण तू बंधन में था , अब प्रिय आ रहे है , तो मन को नियंत्रण में रखो | तब वो चले आए है तो उनका आगे बढ़ कर स्वागत करो | आज उनके दर्शन होगे| संयोग रस की व्यंजना का वर्णन हो रहा है |
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