रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूप से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे?
Answers
उत्तर :
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूप से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप निम्न प्रकार से भिन्न थे :
रोमन साम्राज्य की वास्तुकला :
रोम के निवासी कुशल निर्माता थे। उन्होंने वास्तुकला में डाट और गुंबद बना कर दो महत्वपूर्ण सुधार किए। उनके भवन दो - तीन मंजिलों वाले होते थे । इनमें डांटो को एक के ऊपर दूसरी बनाया जाता था। उनकी डांटे गोल होती थी। यह डांट नगर के द्वारों , पुलों ,बड़े भवनों तथा विजय स्मारक बनाने में प्रयोग की जाती थी। डांटो का प्रयोग कोलोजियम बनाने में भी किया गया। यहां ग्लेडिएटरों की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती थी। ये डांटे नहर बनाने के काम में भी लाई जाती थी।
इस्लामी वास्तुकला :
इस्लामी वास्तुकला पर ईरानी कला का प्रभाव था। परंतु अरब निवासियों ने अलंकरण के मौलिक नमूने निकाल लिए। उनके भवनों में गोल गुंबद, छोटी मीनारें, घोड़ों के खुर के आकार के मेहराब तथा मरोड़दार स्तंभ होते थे। इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएं अरबों की मस्जिदों, पुस्तकालयों ,महलों, चिकित्सालयों और विद्यालयों में देखी जा सकती हैं।
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Explanation:
इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है - परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य।[1] इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है।[2] दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है।[3] या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।[4] इन घटनाओं व ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है।
इतिहास का आधार एवं स्रोत
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मुख्य लेख: इतिहास लेखन
इतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दु:साध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है