Hindi, asked by bandarinagamani25, 4 months ago

रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों किया गया था इसलिप्रतिज्ञा ​

Answers

Answered by MizzCornetto
37

ᴀɴsᴡᴇʀ-:

ᴛʜᴇ ᴘʀᴏᴄᴇss ᴛʜʀᴏᴜɢʜ ᴡʜɪᴄʜ ɢʀᴇᴇɴ ᴘʟᴀɴᴛs ᴘʀᴇᴘᴀʀᴇ ғᴏᴏᴅ ᴜsɪɴɢ-:

\blue\implies ᴄᴀʀʙᴏɴ-ᴅɪᴏxɪᴅᴇ

\blue\implies ᴡᴀᴛᴇʀ

\blue\implies ᴄʜʟᴏʀᴏᴘʜʏʟʟ

\blue\implies ᴏxʏɢᴇɴ

\blue\implies sᴜɴʟɪɢʜᴛ

ᴇǫᴜᴀᴛɪᴏɴ-:

{\boxed{\sf{\blue{6CO_2~\pink+6H_2~O\pink+light\pink\longrightarrow C_6~H_1~_2~O_6\pink+O_2}}}}

Answered by mohitek202
2

Answer:

nstall App

Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप

यहां हुईं थीं रानी लक्ष्मीबाई शहीद, अंग्रेज अफसर ने किया था सेल्यूट

5 वर्ष पहले

ग्वालियर. 19 नवंबर को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन है। झांसी से कालपी होते हुए रानी लक्ष्मीबाई दूसरे विद्रोहियों के साथ ग्वालियर आ गई थीं। लेकिन कैप्टन ह्यूरोज की युद्ध योजना के चलते आखिरकार रानी लक्ष्मीबाई घिर गईं। शहर के रामबाग तिराहे से शुरू हुई आमने-सामने की जंग में जख्मी रानी को एक गोली लगी और वह स्वर्णरेखा नदी के किनारे शहीद हो गईं। रानी की वीरता देख अंग्रेस कैप्टन ह्यूरोज ने शहादत स्थल पर उनको सैल्यूट किया था। dainikbhaskar.com इस मौके पर उनके खास व्‍यक्‍ति‍त्‍व, गौरवशाली इति‍हास और अन्‍य पहलुओं से आपको रूबरू करा रहा है।

जंग-ए-आजादी की सबसे बड़ी आहुति

भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई 1857 की जंग में सबसे बड़ी आहुति ग्वालियर में ही हुई थी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शहादत इसी शहर में हुई थी। ह्यूरोज की घेराबंदी और संसाधनों की कमी के चलते रानी लक्ष्मीबाई घिर गईं थीं। ह्यूरोज ने पत्र लिख कर रानी से एक बार फिर समर्पण करने को कहा। जवाब में रानी अपनी विश्वस्त सेना के साथ किला छोड़ मैदान में उतर आई। रणनीति थी कि एक और से तात्या की सेना ब्रिगेडियर स्मिथ की टुकड़ी को घेरेगी तो दूसरी ओर से रानी लक्ष्मीबाई। लेकिन तात्या वहां नहीं पहुंच सके और रानी स्मिथ व ह्यूरोज के बीच घिर गई। लड़ते हुए गोली लगने और जंग के पुराने जख्मों के चलते शहर के मौजूदा रामबाग तिराहे से नौगजा रोड़ पर आगे बड़ते हुए स्वर्ण रेखा नदी के किनारे रानी का नया घोड़ा अड़ गया। गोली लगने से मूर्छित-सी होने लगीं। इसी बीच एक तलवार ने उसके सिर को एक आंख समेत अलग कर दिया और रानी शहीद हो गईं। उनके शरीर को बाबा गंगादास की शाला के साधु, झांसी की पठान सेना की मदद से शाला में ले आए, यहां उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। रानी की वीरता देख कर खुद ह्यूरोज ने जंग के मैदान में और अपनी ऑफिशियल डायरी में भी लक्ष्मीबाई को सैल्यूट किया।

लक्ष्मीबाई ने कहा, ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’

तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी की हड़प नीति के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के गोद लिए बालक को वारिस मानने से इनकार कर दिया। रानी से झांसी के शासन सूत्र अंग्रेज रेजिडेंट को सौंपने का आदेश दिया गया। लेकिन स्वाभिमानी रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रोजों को दो टूक जवाब दे दिया, “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी"। अब अंग्रेजों और रानी लक्ष्मीबाई के बीच युद्ध ज़रूरी हो गया। रानी ने भी तैयारियां कर लीं थीं। झांसी की रानी के विद्रोह को खत्म करने के लिए कैप्टन ह्यूरोज को जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

कालपी के लिए किया कूच

झांसी के किले में रसद व युद्ध सामग्री खत्म होते देख रानी ने समर्पण की जगह जंग को जारी रखने की गरज से कालपी की ओर कूच किया। वहां बिठूर से भागे नाना साहव पेशवा और तात्या टोपे के नेतृत्व में बागियों की फौज ने किले पर कब्जा कर डेरा डाल लिया था। वहां से विद्रोहियों नें ग्वालियर आ कर वहां के नाबालिग सिंधिया राजा से धन व दूसरे युद्ध संसाधन वसूल कर अंग्रेजों से जंग की तैयारी कर ली।

आगे की स्लाइड्स में देखें और फोटोज...

Similar questions