रिपोर्ताज की विशेषता नहीं है
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(1) रिपोर्ताज हिन्दी की ही नहीं, पाश्चात्य साहित्य की भी नवीनतम विधा है। (2) इसका जन्म साहित्य और पत्रकारिता के संयोग से हुआ है। (3) रिपोर्ताज घटना का आँखों देखा हाल होता है। (4) इसमें कुछ घटनाओं के सूक्ष्म निरीक्षण के आधार पर मनोवैज्ञानिक विवेचन तथा विश्लेषण होता है।
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