रासो काव्य की चार विशेषताएँ लिखिए I
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रासो काव्य की चार विशेषताएं इस प्रकार हैं....
वीरता एवं श्रंगार रस की प्रधानता — रासो काव्य में वीरता एवं श्रंगार रस की प्रधानता रही है। प्राचीन कालीन कविता में वीरता एवं श्रृंगार रस प्रधान प्रवृत्तियां हमेशा प्रधान प्रवृत्तियां रही हैं और रासो काव्य भी इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं है।
लोक कथाओं की बहुलता — रासो महाकाव्य में जहां राजाओं की वीरता और उनके विजय उल्लास का वर्णन है, वही लोक कथाओं का प्रयोग करते हुए कवि ने अनेक प्रसंगों का वर्णन किया है, इस कारण यह काव्य आमजन में भी आकर्षक का विषय बन गए।
शैलीगत विशिष्टता — रासो महाकाव्य मुख्यतः वर्णनात्मक शैली में लिखे गए हैं, कुछेक रासो महाकाव्य को छोड़ दिया जाए तो उनमें अलंकारों का अभाव दिखाई देता है अर्थात रासो काव्य में सौंदर्य हेतु अलंकारों का कम प्रयोग है बल्कि वाक् कौशल तथा संवाद का अधिक प्रयोग है।
ऐतिहासिकता — रासो महाकाव्य ऐतिहासिकता भरपूर है, जो चारण कवियों द्वारा अपने राजाओं के शौर्य और ऐश्वर्य का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करते हैं।
रासो काव्य की चार विशेषताएं इस प्रकार हैं....
वीरता एवं श्रंगार रस की प्रधानता — रासो काव्य में वीरता एवं श्रंगार रस की प्रधानता रही है। प्राचीन कालीन कविता में वीरता एवं श्रृंगार रस प्रधान प्रवृत्तियां हमेशा प्रधान प्रवृत्तियां रही हैं और रासो काव्य भी इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं है।
लोक कथाओं की बहुलता — रासो महाकाव्य में जहां राजाओं की वीरता और उनके विजय उल्लास का वर्णन है, वही लोक कथाओं का प्रयोग करते हुए कवि ने अनेक प्रसंगों का वर्णन किया है, इस कारण यह काव्य आमजन में भी आकर्षक का विषय बन गए।
शैलीगत विशिष्टता — रासो महाकाव्य मुख्यतः वर्णनात्मक शैली में लिखे गए हैं, कुछेक रासो महाकाव्य को छोड़ दिया जाए तो उनमें अलंकारों का अभाव दिखाई देता है अर्थात रासो काव्य में सौंदर्य हेतु अलंकारों का कम प्रयोग है बल्कि वाक् कौशल तथा संवाद का अधिक प्रयोग है।
ऐतिहासिकता — रासो महाकाव्य ऐतिहासिकता भरपूर है, जो चारण कवियों द्वारा अपने राजाओं के शौर्य और ऐश्वर्य का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करते हैं।