राष्ट्रीय निर्माण में मातृभाषा की भूमिका पर निबंध 300 शब्दों का
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जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है।
मौलिक लेखन, चिंतन या रचनात्मकता को दुनिया भर में नोट किया जाता है। दुनिया में आज भी भारत की पहचान यहां की भाषा में लिखित उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, योगसूत्र, रामायण, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि से है जो मौलिक रचनाएँ हैं।
भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो एक भाषा होना चाहिए। इससे धार्मिक तथा सांस्कृतिक एकता बढ़ती है। यह स्वतंत्र तथा समृद्ध राष्ट्र के लिए आवश्यक है। इसलिए प्रत्येक विकसित तथा स्वाभिमानी देश की अपनी एक भाषा अवश्य होती है जिसे राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त होता है।
किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उसे ही बनाया जाता है जो उस देश में व्यापक रूप में फैली होती है। संपूर्ण देश में यह संपर्क भाषा व्यवहार में लाई जाती है।
राष्ट्रभाषा संपूर्ण देश में भावात्मक तथा सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रधान साधन होती है। इसे बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के प्रमुख राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश में प्रमुख रूप से बोली जाती है।