Hindi, asked by jutikap3371, 11 months ago

रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए ।

Answers

Answered by 9528901605
0

Explanation:

Explanation:रीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए।

Explanation:रीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए।इन ग्रंथों में रस, अलंकरम ध्वनि आदि का विवेचन, लक्षण और उदाहरण शैली में किया गया है। एक दोहे में रस, अलंकार आदि का लक्षण कहकर, कवित्त या सवैये में उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जाता था।

Explanation:रीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए।इन ग्रंथों में रस, अलंकरम ध्वनि आदि का विवेचन, लक्षण और उदाहरण शैली में किया गया है। एक दोहे में रस, अलंकार आदि का लक्षण कहकर, कवित्त या सवैये में उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जाता था।आचार्य केशवदास, मतिराम, देव, चिंतामणि, भूषण, जसवंत सिंह, पद्माकर, बेनी और बिहारी आदि इसी परम्परा के प्रमुख कवि थे। इन्होंने काव्यांगों का पूर्ण विवेचन किया, परंतु शब्द शक्ति पर यथोचित विवेचन प्रस्तुत न कर सके, इस काल में श्रृंगार की मदिरा ने रस की प्रधानता थी। श्रृंगार के आलम्बन और उद्दीपनों के बड़े सरस उदाहरण बनाए गए। ये लोग श्रृंगार को रसराज मानते थे, उनका जीवन विलासितापूर्ण था। कवियों ने स्त्री सौंदर्य का बड़ा सूक्ष्म चित्रण किया। रीतिकालीन साहित्य का वातावरण सौरभय था, उसमें विलासमयी मादकता थी, राजदरबारों की गुलगुली गिलमें और ग़लीचों के विलासमयी जीवन की स्पष्ट छाप थी। उसमें प्रभात के खिले हुए पुष्पों की स्फूर्तिदायिनी सुगंध तो न थी, परंतु शीशी में बंद इत्र का मादक सौरभ था। उस साहित्य में सुलाने की शक्ति अधिक थी, जगाने की कम।

Explanation:रीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए।इन ग्रंथों में रस, अलंकरम ध्वनि आदि का विवेचन, लक्षण और उदाहरण शैली में किया गया है। एक दोहे में रस, अलंकार आदि का लक्षण कहकर, कवित्त या सवैये में उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जाता था।आचार्य केशवदास, मतिराम, देव, चिंतामणि, भूषण, जसवंत सिंह, पद्माकर, बेनी और बिहारी आदि इसी परम्परा के प्रमुख कवि थे। इन्होंने काव्यांगों का पूर्ण विवेचन किया, परंतु शब्द शक्ति पर यथोचित विवेचन प्रस्तुत न कर सके, इस काल में श्रृंगार की मदिरा ने रस की प्रधानता थी। श्रृंगार के आलम्बन और उद्दीपनों के बड़े सरस उदाहरण बनाए गए। ये लोग श्रृंगार को रसराज मानते थे, उनका जीवन विलासितापूर्ण था। कवियों ने स्त्री सौंदर्य का बड़ा सूक्ष्म चित्रण किया। रीतिकालीन साहित्य का वातावरण सौरभय था, उसमें विलासमयी मादकता थी, राजदरबारों की गुलगुली गिलमें और ग़लीचों के विलासमयी जीवन की स्पष्ट छाप थी। उसमें प्रभात के खिले हुए पुष्पों की स्फूर्तिदायिनी सुगंध तो न थी, परंतु शीशी में बंद इत्र का मादक सौरभ था। उस साहित्य में सुलाने की शक्ति अधिक थी, जगाने की कम।रीतिकालीन काव्यों की प्रवृत्तियाँ

Explanation:रीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए।इन ग्रंथों में रस, अलंकरम ध्वनि आदि का विवेचन, लक्षण और उदाहरण शैली में किया गया है। एक दोहे में रस, अलंकार आदि का लक्षण कहकर, कवित्त या सवैये में उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जाता था।आचार्य केशवदास, मतिराम, देव, चिंतामणि, भूषण, जसवंत सिंह, पद्माकर, बेनी और बिहारी आदि इसी परम्परा के प्रमुख कवि थे। इन्होंने काव्यांगों का पूर्ण विवेचन किया, परंतु शब्द शक्ति पर यथोचित विवेचन प्रस्तुत न कर सके, इस काल में श्रृंगार की मदिरा ने रस की प्रधानता थी। श्रृंगार के आलम्बन और उद्दीपनों के बड़े सरस उदाहरण बनाए गए। ये लोग श्रृंगार को रसराज मानते थे, उनका जीवन विलासितापूर्ण था। कवियों ने स्त्री सौंदर्य का बड़ा सूक्ष्म चित्रण किया। रीतिकालीन साहित्य का वातावरण सौरभय था, उसमें विलासमयी मादकता थी, राजदरबारों की गुलगुली गिलमें और ग़लीचों के विलासमयी जीवन की स्पष्ट छाप थी। उसमें प्रभात के खिले हुए पुष्पों की स्फूर्तिदायिनी सुगंध तो न थी, परंतु शीशी में बंद इत्र का मादक सौरभ था। उस साहित्य में सुलाने की शक्ति अधिक थी, जगाने की कम।रीतिकालीन काव्यों की प्रवृत्तियाँअकबर और शाहजहाँ के शासनकाल में ललित कलाओं की पर्याप्त उन्नति हुई। इससे जनता की अभिरुचि भी परिष्कृत हुई। रीतिकाल के कवियों में कला-प्रेम की प्रधानता थी। मनोहर रूप और दृश्यों के चित्रण में, चमत्कारपूरन कल्पना की उड़ान में, अलंकारप्रियता में उनकी कलाप्रियता के दर्शन होते हैं। बिहारी का एक-एक दोहा उत्कृष्ट काव्य-कला का उदाहरण हो सकता है। पद्माकर, देव, मतिराम, बिहारी ये उस काल के उच्च कोटि के कलाकार थे।

Similar questions