रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिर-फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार।।2।
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रहीम
आपका प्रिय मित्र या बंधु रूठ जाए तो उसे सौ-सौ बार भी मनाना पड़े तो मनाइए, क्योंकि मित्रता में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। छोटी-छोटी बातों से यूँ मित्रता को तोड़ा नहीं जाता। यह संबंध असाधारण होता है, जैसे मोतियों का हार जितनी भी बार टूटता है, उसे
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार ।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ।।
इस दोहे में रहीम जी हमे यह समझाना चाहते है ,
यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठ जाता है तो हमें अपने प्रिय को मनाना चाहिए| जिस प्रकार मोतियों की माला टूट जाती पर हम बार-बार इन मोतियों को धागों में पिरो देते है| हमें अपने प्रिय रिश्तों को नहीं खोना चाहिए | रिश्तों के टूटने पर भी उन्हें जोड़ने का प्रयास करना चाहिए | जिस प्रकार हम माला के मोतियों को जोड़ देते है | अच्छे दोस्त और सच्चे रिश्ते एक ही बात मिलते है ,हमने माफ़ करके उन्हें सुधार लेना चाहिए |