'रीढ़ की हड्डी' एकांकी में निहित सामाजिक
विसंगतियों पर प्रकाश डाले।
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हड्डी टूट जाती है तो हम चल नहीं पाते हैं मतलब की रीड की हड्डी जब टूट जाती है तबीयत जल्दी बातें
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रीढ़ की हड्डी' एकांकी सामाजिक खोखलेपन पर व्यंग्यात्मक ढंग से प्रकाश डालकर उसे दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। हमारे समाज में लड़कियों के विवाह के सम्बन्ध में जो छान-बीन की जाती है, उन्हें जिस तरह नापा-तौला जाता है, वह एकदम अपमानजनक है। आज लड़की-लड़के दोनों में समानता का व्यवहार करने की चर्चा तो की जाती है, परन्तु ऐसा नहीं होता है।
लड़के वाले स्वयं को निर्दोष, उच्च एवं सर्वगुण-सम्पन्न मानते हैं तथा लड़की-पक्ष को अपने से छोटा मानकर उनसे मनचाही फरमाइश करते हैं। अन्त में उमा द्वारा जो उत्तर दिया जाता है, उससे नारी-चेतना का स्पष्ट प्रकाशन हुआ है। इस तरह प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य नारी-चेतना को जागृत करना, नारी सम्मान की भावना का प्रसार करना तथा रिश्ते को लेकर परम्परागत रूढ़ियों का विरोध करना है।
रीढ़ की हड्डी' एकांकी में लेखक ने समाज में व्याप्त बुराइयों को सीधे ढंग से व्यक्त न कर व्यंग्य के माध्यम से स्पष्ट किया है। रामस्वरूप लड़के वालों की इच्छा के अनुसार अपनी बी.ए. पास लड़की को मैट्रिक पास बताता है। लड़की वाला होने के कारण अपने आप को छोटा समझकर गोपाल प्रसाद की चापलूसी करता है।
गोपाल प्रसाद को अपने लड़के के चरित्र एवं बैकबोन आदि कमजोरियों का ज्ञान होते हुए भी झूठ बोलता है, दकियानूसी विचार प्रकट करता है। वह कहता है कि "क्या लड़कों की पढ़ाई और लड़कियों की पढ़ाई एक ही बात है?... अगर औरतें भी वही करने लगीं, अंग्रेजी अखबार पढ़ने लगीं, फिर तो हो चुकी गृहस्थी।" इस प्रकार एकांकी में गोपाल प्रसाद एवं शंकर के माध्यम से विवाह के रिश्ते को लेकर जो कुछ लोगों की सोच है, उस पर व्यंग्य किया गया है।
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