Hindi, asked by laxmi9049, 11 months ago

रचना विभाग
पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 40
(1) खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं विषय पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

Answers

Answered by Human100
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Answer:

जीवन एक यात्राा है…आप सब छोड़ सकते हैं, पर अपनी पहचान और अपनी बुद्धि को नहीं छोड़ सकते हैं। यह भी सत्य है कि यह आपकी बाहर की यात्राा है। आप सब छोड़ सकते हैं, पर अपनी पहचान और अपनी बुद्धि को नहीं छोड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह आपकी अपनी दुनिया है। यह भी सत्य है कि यह आपकी बाहर की यात्राा है। आप किनारे की ओर जा रहे हैं। उस किनारे पहुंचकर-आप लौटना चाहें भी तो नहीं लौट सकेंगे। वह शरीर का किनारा है।

वहां से आप शिशु बनना चाहो, तो नहीं बन सकते। यह आपकी आंतरिक नहीं,बल्कि बाह्य यात्राा है, जो भोग की यात्राा है। यह आपकी अधोगामी यात्राा है। आप अपने केंद्र से अधोगामी हो गए हैं। आपकी जाग्रति तो हुई है, पर आप जागकर अपनी सीमा की ओर नहीं जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि आप दो दिशाओं में विभाजित हो चुके हैं। उन दो दिशाओं के दो लक्ष्य हैं। एक अंतर्मन की ओर की दिशा, जो आपका आत्म-जागरण है। स्वयं की अंतर्यात्र है। यह अधोगमन की यात्राा है। आपके अंतर्मन में जो दूसरी यात्राा है, जो दूसरी दिशा का छोर है। वह बुद्धि है। बुद्धि छोर नहीं है। यह आपका किनारा नहीं। बुद्धि के तल पर बुद्धि के बाद ही आप हैं। तल से बाहर निकलने के बाद फिर आप नहीं होते हैं। तब आप परमात्ममय होते हो, आत्ममय होते हो। यह है आपका जागरण, जिसे बुद्धि के परे जाकर ही अनुभव किया जा सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब तक आप बुद्धि के जरिये वाद-विवाद में फंसे रहेंगे, तब तक परमात्मा की अनुभूति तो क्या स्वयं की अंतस चेतना की अनुभूति भी नहीं कर सकते।ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकु मार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24 तुलसी सभागार में जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीश्रीसंत ने कहा- खुशियां बांटने से बढ़ती हैं और दुख बांटने से घटता हैइतिहास ऐसे महान और परोपकारी महापुरुषों के उदाहरण से समृद्ध है, जिन्होंने परोपकार के लिए अपने अस्तित्व और अस्मिता को दांव पर लगा दिया। हमारे यहां दान की परंपरा यानी देने का सुख प्राचीन काल से चला आ रहा है। कहा जाता है कि घर की तिजोरी में बंद पड़ा धन अगर किसी की सेवा में, सहायता में, स्कूल व अस्पताल बनाने में, किसी भूखे को भोजन देने में खर्च कर दिया जाए तो उससे बढ?र धन का और कोई इस्तेमाल नहीं हो सकता।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया-कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं का कहना है कि चाहे खर्च की गई रकम छोटी ही क्यों न हो, व्यक्ति को प्रसन्न बनाती है। शोध में वे कर्मचारी ज्यादा खुश पाए गए जो बोनस की सारी रकम खुद पर खर्च करने के बजाय कुछ रकम दूसरों पर भी खर्च करते हैं। खुश रहने की अनिवार्य शर्त यह है कि आप खुशियां बांटें। खुशियां बांटने से बढ़ती हैं और दुख बांटने से घटता है। यही वह दर्शन है जो हमें स्व से पर-कल्याण यानी परोपकारी बनने की ओर अग्रसर करता है। जीवन के चौराहे पर खड़े होकर यह सोचने को विवश करता है कि सबके लिए जीने का क्या सुख है? मनुष्य के समाज के प्रति उसके कुछ कर्तव्य भी होते हैं। सबसे बड़ा कर्तव्य है एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होना और यथाशक्ति सहायता करना।

Answered by unknown444428
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Explanation:

खुशी और गम जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू है खुशो सुख, शाति, सहजता तथा सुकून का परिचायक है और गम दुख, अशांति, असहजता तथा बेचैनी का प्रतीक है। गम बाँटने से कम होते हैं और खुशियाँ बाँटने से और बढ़ती हैं। खुश होने पर लगभग हर कोई सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर कदम बढ़ाने लगता है। स्वभावत: इसी सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण हम अपनी खुशियों के बारे में अपने परिवार, रिश्तेदार तथा मित्रों को मताते है। बदले में उनकी तरफ से हमें बचाईयाँ, शुभकामनाएँ तथा उपहार रूपी सम्मान मिलता है यह सम्मान खुशी को दोगुना-चौगुना कर देता है। हम दूसरों की नजरों में जितना ही ऊँचा उठते हैं उतना ही हममें आत्मविश्वास और उमंग बढ़ता जाता है। हमारी उपलब्धियों के बारे में सुनकर हमारे निकट सबंधी खुश हो जाते हैं और उनकी प्रतिक्रिया से हमारा भी हौसला बढ़ता है। जीवन संघर्षों से भरा पड़ा है। अतः दुःखों व पीड़ाओं की श्रृंखला में मात्र एक खुशी आ जाने से हम अपने समस्त दुःखों को भूल जाते है। इसीलिए हमें अपने जीवन की छोटी-सी-छोटी खुशियाँ भी दूसरों को बाँटनी चाहिए। अपनी खुशियों में औरों को शामिल करने से खुशियाँ उत्सव बन जाती हैं। अंततः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि खुशियाँ बाँटने से ही बढ़ती है और अपने होने का प्रमाण देती है।

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